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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
पूर्व में जो झगड़े किये थे उनके बैर बँधे होते हैं और वे आज झगड़े के रूप में चुकता होते हैं। झगड़ा करते हैं उसी क्षण बैर का बीज पड़ जाता है, वह अगले जन्म में उगेगा।
प्रश्नकर्ता : वह बीज किस तरह दूर हो? ।
दादाश्री : धीरे-धीरे समभाव से निकाल' करते रहो तब फिर दूर हो जाएगा। बहुत भारी बीज पड़ा हो तो देर लगेगी, शान्ति रखनी पड़ेगी। प्रतिक्रमण बहुत करने होंगे। अपना कोई कुछ नहीं लेता। दो वक्त का खाना मिले, कपड़े मिले फिर क्या चाहिए? कमरे को ताला लगाकर जाते हैं मगर हमें दो वक्त खाना मिलता है या नहीं, इतना ही देखना है। हमें घर में बंद करके जाएँ तब भी हर्ज नहीं है। हम सो जाएंगे। पूर्व जन्म के बैर ऐसे बंधे हैं कि हमें ताला लगाकर बंद करके जाएँ! बैर और वह भी नामसझी में बंधा हुआ! समझपूर्वक हो तो हम मान लें कि यह समझपूर्वक है, तब भी हल निकल आता। अब नासमझी हो वहाँ हल कैसे निकले? इसलिए वहाँ बात को छोड़ देना।
अब सभी बैर छोड़ देने हैं। हो सके तो कभी हमारे पास आकर 'स्वरूप ज्ञान प्राप्त कर लेना ताकि सभी बैर छूट जाएँ। इस जन्म में ही सभी बैर छोड़ देना। हम तुम्हें रास्ता दिखाएँगे।
खटमल काटते हैं, वे तो बेचारे बहुत अच्छे हैं पर यह पति बीवी को काटता है और बीवी पति को काटती है वह बहत असह्य है। क्यों? काटते हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता : काटते है।
दादाश्री : तब वह काटने का बंद करना है। खटमल काटते हैं, वे तो काट के चले जाएंगे। वे बेचारे तो भीतर तृप्त हों तो चले जाते हैं पर बीवी तो हमेशा काटती ही रहती है। एक आदमी तो मुझे कहता है, 'मेरी वाइफ मुझे साँपिन की तरह काटती है!' तब मुए तुमने शादी क्यों की सपिन के साथ? तब क्या वह साँप नहीं हुआ? ऐसे ही साँपिन मिलती होगी? साँप हो तो ही साँपिन आती है।
हम तो इतना समझते हैं कि झगड़ने के बाद 'वाइफ' के साथ व्यवहार ही नहीं रखना हो तो अलग बात है पर फिर से बोलना है इसलिए बीच में जो व्यवहार (बिगाड़ते) है वह सारा गलत हैं। हमें यह लक्ष्य में ही रहना चाहिए कि दो घण्टे के बाद फिर से बोलना है, इसलिए उसकी किच-किच नहीं करते। अगर तुम्हें अभिप्राय फिर से बदलना नहीं हो तो अलग बात है। हमारा अभिप्राय बदले नहीं तब हमारा किया हुआ सही है। फिर से 'वाइफ' के साथ बैठनेवाले नहीं हो, तो फिर जो झगड़ा किया वह सही है! पर यह तो कल फिर से साथ में बैठकर भोजन करनेवाले हो। तब फिर आज नाटक किया उसका क्या? यह सोचना चाहिए न?
सबसे पहले पति को पत्नी की माफ़ी माँगनी चाहिए। पति उदार मन होता है। बीवी पहली माफ़ी नहीं माँगती। समझ में आया न, क्या कहा?
प्रश्नकर्ता : पति को उदार मन का कहा, इसलिए वे खुश हो गए।
दादाश्री : नहीं, वह उदार मनवाला ही होता है। उसका विशाल मन होता है और स्त्रियाँ साहजिक होती हैं। साहजिक होने से भीतर उदय आने पर माफी माँग लें, नहीं भी माँगें। पर यदि तुम माँगोगे, तब वह तुरन्त माँग लेगी। और तुम उदय कर्म के अधीन नहीं रहोगे, तुम जागृति के अधीन रहोगे। और वह उदय कर्म के अधीन रहती है, वह सहज कहलाती है न! स्त्री सहज कहलाती है। तुम्हारे में सहजता नहीं आएगी। यदि आप सहज हो जाए तो बहुत सुखी हो जाएँ।
प्रश्नकर्ता : यह अहम् झूठा है, ऐसा हमें कहा जाता है और सब जगह सुनते हैं, कई संत पुरुष भी ऐसा कहते हैं, फिर भी अहम् क्यों नहीं जाता?
दादाश्री : अहम् कब जाएगा? अहम् झूठा है, ऐसा हम एक्सेप्ट (स्वीकार) करें तब जाएगा। वाइफ के साथ तकरार होती हो तब हमें समझ लेना चाहिए कि यह मेरा अहम् गलत है। इसलिए हम प्रतिदिन उस अहम् (अहंकार) से ही फिर भीतर माफ़ी मंगवाते रहें, तो वह अहम् चला जाएगा। कुछ उपाय तो करना चाहिए न?