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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
दु:ख मिलेगा। फिर चिल्लाओगे कि 'पत्नी मुझे ऐसा क्यों करती है?' पत्नी को ऐसा हो कि, 'इस पति के साथ मुझसे ऐसा क्यों हो रहा है?' उसे भी दु:ख होता है, पर क्या कर सकते हैं? फिर मैंने उनसे पूछा कि, 'पत्नी तुम्हें खोज लाई थी कि तुम पत्नी को खोज लाये थे?' तब वे बोले, 'मैं ढूंढ लाया था।' तब उस बेचारी का क्या दोष? ले आने के बाद टेढ़ी निकले, उसमें वह क्या करे, कहाँ जाए फिर?
प्रश्नकर्ता : चुप रहकर बात टालने से उसका निपटारा हो सकता
प्रश्नकर्ता : तब फिर उसे कुछ कहना ही नहीं?
दादाश्री : कहना ज़रूर, लेकिन सम्यक् कहना अगर कहना आता हो तो। वर्ना कुत्ते की भाँति भौं भौं करने का क्या अर्थ? इसलिए सम्यक् कहना।
प्रश्नकर्ता : सम्यक् किस तरह से?
दादाश्री: ओहोहो! तुमने इस बच्चे को क्यों गिराया? क्या कारण उसका? तब वह कहेगी कि, 'जान-बूझकर मैं थोड़े गिराऊँगी? वह तो मेरे हाथ से सरक गया और गिर पड़ा '
प्रश्नकर्ता : वह झूठ बोलती है न?
दादाश्री : नहीं हो सकता। हमें तो सामने मिले तो 'कैसे हो? कैसे नहीं?' ऐसा कहना चाहिए। सामनेवाला ज़रा चीखे-चिल्लाये तब हमें धीरे से 'समभाव से निकाल (निपटारा)' करना है। उसका कभी न कभी निकाल तो करना पड़ेगा न? न बोले तो समाधान थोड़े ही हो जाता है? वह निकाल नहीं होता इसलिए तो अबोला (किसी मामले में मतभेद होने के कारण आपस में बातचीत न करना) खड़ा होता है। अबोला होने से जिस बात का निकाल नहीं हुआ उसका बोझ लगता है। हमें तो तुरन्त उसे रोककर कहना है, 'रूकिए, हमारी कुछ गलती हो तो बताइए। मेरी बहुत गलतियाँ होती हैं आप तो बहुत होशियार, पढ़े लिखे हैं। आपसे गलती नहीं होती, पर मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ, इसलिए मेरी कई गलतियाँ होती हैं।' ऐसा कहें तो वह खुश हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : ऐसा करें तो भी वह नरम नहीं पड़े तो क्या करें?
दादाश्री : नरम नहीं पड़े तो हमें क्या करना? हमें कहकर छूट जाना है, फिर क्या उपाय? कभी न कभी किसी दिन नरम पडेगी। धमकाकर नरम करोगे तो बिलकुल नरम नहीं होगी। आज नरम दिखेगी पर वह मन में लिखकर रखेगी और जब हम नरम होंगे. उस दिन फिर सब निकालेगी। अर्थात् जगत बैरवाला है। कुदरत का कानून ऐसा है कि प्रत्येक जीव भीतर बैर रखता ही है। भीतर ऐसे परमाणुओं का संग्रह करता है। इसलिए हमें पूर्ण रूप से केस को पूरा कर देना है।
दादाश्री : वह झूठ बोले यह हमें नहीं देखना है, झूठ बोले कि सच बोले वह उसकी जिम्मेदारी है, वह हमारी जिम्मेदारी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : कहना नहीं आए तो फिर क्या करें? चुप बैठे?
दादाश्री : मौन रहो और देखते रहो कि 'क्या होता है?' सिनेमा में बच्चे को गिराते हैं तब हम क्या करते हैं? सभी को कहने का अधिकार है पर क्लेश बढ़े नहीं इस प्रकार कहने का अधिकार है। बाकी जो बात कहने से क्लेश बढ़ता हो, तो वह मूखों का काम है।
प्रश्नकर्ता : हमें झगड़ा नहीं करना हो, हम कभी झगड़ा करते ही नहीं हों फिर भी घर के सभी सामने से झगड़ा करते हो तब क्या करें?
दादाश्री : हमें 'झगड़ाप्रूफ' (किसी से भी झगड़ा नहीं हो ऐसा) हो जाना है। 'झगड़ाप्रूफ' होंगे तभी इस संसार में रह पाएँगे। हम तुम्हें 'झगडाप्रफ' बना देंगे। झगड़ा करनेवाला भी ऊब जाए ऐसा हमारा स्वरूप होना चाहिए। पूरे 'वर्ल्ड' में कोई हमें 'डिप्रेस' (उदास) नहीं कर सके ऐसा होना चाहिए। हम 'झगड़ाप्रूफ' हो जाएँ, फिर झंझट ही नहीं। लोगों को झगड़े करने हों, गालियाँ देनी हों तब भी हर्ज नहीं और फिर भी बेशर्म नहीं कहलाएगा, उलटे जागृति बहुत बढ़ेगी।