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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार होती। मनुष्य पहचान ही नहीं सकता। मनुष्य खुद को नहीं पहचान सकता कि मैं कैसा हूँ! अर्थात् यह वाक्य 'एक दूसरों को जानते हैं ये सब बातों में कुछ रखा नहीं और पसंद करने में भूल हुई नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यह समझाइये कि किस प्रकार पहचानना? पति अपनी पत्नी को धीरे-धीरे सूक्ष्मता से प्रेम द्वारा किस तरह पहचाने, यह समझाइये।
दादाश्री : पहचान कब होती है? पहले तो समानता का स्थान दें तब। उन्हें स्पेस (जगह) देनी चाहिए। जैसे हम बाजी खेलने बैठते हैं आमने-सामने, उस वक्त समानता का दाँव होता है, तब खेलने में मजा आता है। पर ये तो समानता का दाँव क्या देंगे? हम समानता का दाँव देते हैं।
प्रश्नकर्ता : प्रेक्टिकली (व्यावहारिक दृष्टि) से किस प्रकार देते
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार दादाश्री : हाँ, हीराबा से मैं आज भी कहता हूँ न!
मैं भी, इस उम्र में भी हीराबा से कहता हूँ, कि तुम्हारे बगैर मैं बाहर जाता हूँ पर मुझे अच्छा नहीं लगता। अब वह मन में क्या समझती है, मुझे अच्छा लगता है और उन्हें क्यों अच्छा नहीं लगता होगा? ऐसा कहने पर संसार बिगड़ नहीं जायेगा। अब त् घी डालना, नहीं डालेगा तो खाने में रूखापन आएगा! डालो सुन्दर भाव! हीराबा मुझे कहती हैं, 'मैं भी आपको याद आती हूँ?' मैंने कहा, 'लोग याद आते हैं तब आप क्या नहीं याद आओगी?!' और वास्तव में याद आते हैं भी, नहीं याद आते ऐसा नहीं!
आदर्श है हमारी लाइफ (जीवन)! हीराबा भी कहती हैं, 'आप जल्दी घर आना।'
स्त्री का पति होना आया ऐसा कब कहलाएगा? कि स्त्री निरंतर पूज्यता का अनुभव करती हो! स्वामी तो कैसा हो? कभी भी स्त्री और संतानों को मुसीबत न आने दे ऐसा हो। और स्त्री कैसी हो? कभी भी पति को मुसीबत नहीं आने दे, उसके ही विचार में जीती हो।
पत्नी के साथ तक़रार (पति-पत्नी) दो जने मस्ती-ऊधम मचाते हों, लड़े-झगड़े पर एकदूसरे पर मुकदमा दायर नहीं करते। और हम बीच में पड़ें तो वे अपना काम निकाल लेते हैं और वे लोग तो फिर आपस में मिल जाते हैं। दूसरे के घर रहने नहीं जाते, इसे 'तोता मस्ती' कहते हैं। हम तुरन्त समझ जाते हैं कि दोनों ने तोता मस्ती शुरू की है।
___ एक घण्टे तक नौकर को, बच्चों को या पत्नी को बार बार धमकाया हो तो फिर वह (अगले जनम में) पति होकर अथवा सास होकर तुम्हें सारा जीवन परेशान करेगा! न्याय तो होगा कि नहीं होगा? यही भुगतना है। तुम किसी को दुःख दोगे तब तुम्हें सारा जीवन दु:ख भुगतना होगा। केवल एक घण्टा दुःख दोगे तो फल स्वरूप सारा जीवन
दादाश्री : मन से उन्हें अलग समझने नहीं देते। वे उल्टा-सीधा कहें फिर भी समान हों उस प्रकार। अर्थात् प्रेशर (दबाव) नहीं लाते।
अर्थात् सामनेवाले की प्रकृति को पहचान लेना कि इसकी प्रकृति ऐसी है। फिर और तरीके ढूँढ निकालना। मैं अलग तरह से काम नहीं लेता, लोगों के साथ? सब मेरा कहा मानते हैं कि नहीं मानते? मानते हैं कारण यह नहीं कि कुशलता है, पर मैं अलग तरह से काम लेता
घर में बैठना पसंद नहीं हो पर फिर भी कहना कि तेरे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता। तब वह भी कहेगी कि तुम्हारे बिना मुझे अच्छा नहीं लगता। तब मोक्ष में जा सकोगे। दादा मिले हैं न, इसलिए मोक्ष में जा सकोगे।
प्रश्नकर्ता : आप हीराबा से कहते हैं?