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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार प्रतिकार नहीं करे तब समझना कि स्वामित्व है। यह तो तुरन्त प्रतिकार करते हैं।
घर में तो स्त्री के साथ हर कोई किट-किट करता है, यह वीर की निशानी नहीं। वीर तो कौन कहलाता है, जो स्त्री को अथवा संतानों को, किसी को भी तकलीफ नहीं देता। बच्चा जरा उल्टा बोले पर मातापिता बिगड़ें नहीं तब सही कहलाए। बच्चा तो आखिर बच्चा है। तुम्हें क्या लगता है? न्याय क्या कहता है?
किस बात के लिए हमें टोकना पड़ता है, जिसकी उसे समझ नहीं हो। इसलिए हमें उसे समझना चाहिए। उसे अपनी समझ है। उसे हम कहते हैं तब उसका ईगोइजम (अहंकार) घायल होता है। और फिर वह मौका ढूंढता है कि मेरी पकड़ में आने दो एक दिन। मौके की ताक में रहता है। तो फिर हमें ऐसा करने की ज़रूरत क्या? अर्थात् वह जिनजिन बातों को समझ सके ऐसा है, उसके लिए टोकने की जरूरत नहीं होती।
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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार चाहिए। इतना परिवर्तन लाओ तो अच्छा है। क्लेश तो होना ही नहीं चाहिए। हमें जितने डॉलर प्राप्त हों उतने में गुजारा कर लेना। और तुम्हें जब पैसों की व्यवस्था न हो, तब साड़ियों के लिए जल्दी नहीं करनी चाहिए। तुम्हें भी सोचना चाहिए कि पति मुश्किल में हो तो परेशान नहीं करना चाहिए। ज्यादा हो तो खर्च करना।
गाड़ी का गरम मूड यह तो रात को किसी वक्त पति को घर लौटने में देरी हो जाए, किसी संयोगवश, 'हं... इतनी देर से क्यों आए?' तो वे नहीं जानते कि देर हो गई है? उनके भीतर भी खटकता होगा कि बहुत देर हो गई, बहुत देर हो गई। उसमें फिर यह वाइफ ऐसा कहे कि इतनी देर से कोई आता होगा? बेचारा! ऐसी मीनिंगलेस (अर्थहीन) बातों से क्या फायदा? ऐसा तेरी समझ में आता है? अर्थात् वे घर देर से लौटें उस दिन हम देख लें कि मूड कैसा है? इसलिए फिर तुरन्त कहना कि पहले चाय-वाय पीओ, फिर भोजन के लिए बैठो। ऐसा कहने से अच्छे मूड में आ जाता है। मूड उल्टा हो तो हम उन्हें चाय-पानी पिलाकर खुश करें। जैसे पुलिसवाला आया हो, हमारा मूड नहीं हो, फिर भी चाय-पानी नहीं कराते? यह तो अपना है, उसे खुश नहीं करना चाहिए? अपने हैं, इसलिए खश करना चाहिए। बहुतों को मालूम होगा कि कभी गाड़ी मूड में नहीं होती, ऐसा नहीं होता? गरम हो गई हो तब क्या उसे लाठी मारनी चाहिए? उसे मूड में लाने के लिए ठंडी करनी पड़ती है थोड़ी, रेडीयेटर फिराना, पंखा चलाना। नहीं करते?
प्रश्नकर्ता (स्त्री) : उन्हें ब्रान्डी पीना किस तरीके से बंद कराएँ?
दादाश्री : घर में तुम्हारा प्रेम देखेंगे तो सब छोड़ देंगे। प्रेम के खातिर सभी चीजें छोड़ने को तैयार हैं। प्रेम नज़र नहीं आता इसलिए शराब से प्रेम करता है, किसी और से प्रेम करता है। नहीं तो बीच (समद्र तट) पर हमला करता है। भैया, यहाँ तेरे बाप ने क्या गाड़ रखा हैं, घर पर जा न! तब कहेगा, 'घर पर तो मुझे अच्छा ही नहीं लगता।'
ज्यादा कड़वा हो तो हमें अकेले पी जाना है पर स्त्रियों को कैसे पीने दें? क्योंकि आफ्टर ऑल (आखिर में) हम महादेवजी हैं। हम महादेवजी नहीं हैं ? पुरुष महादेवजी समान होते हैं। अधिक कड़आ हो तो कहो, 'तू सो जा मैं पी लूँगा!' स्त्रियाँ भी संसार में सहयोग नहीं देती बेचारी? फिर उनके साथ अनबन कैसी? उसे कुछ दुःख हो गया हो तब हमें पश्चाताप करना चाहिए एकान्त में कि अब दु:ख नहीं दूंगा, मेरी भूल हो गई।
घर में किस प्रकार के दुःख होते हैं, किस प्रकार के झगड़े होते हैं, किस प्रकार मतभेद होता है, यह सब दोनों लिखकर लाओ न, तो एक घण्टे में सभी का निबटारा ला दूँ। मतभेद नासमझी की वजह से ही होते हैं, दूसरा कोई कारण नहीं।
हमारे घर की बात घर में रहे ऐसा फ़ैमिलि की तरह जीवन जीना