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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
३३ कमजोर पति ! क्या पत्नी नहीं समझती कि तू उसे समझाने निकला है! उसके साथ माथापच्ची करता है! फिर उसके हृदय पर घाव नहीं होगा क्या? मन में कहेगी, 'क्या मैं यह नहीं समझती? यह तो मुझ पर तीर चलाता है। यह कलमुँहा हर रोज़ मेरी गलतियाँ निकालता रहता है।' तो हमारे लोग जान-बूझकर ये भूलें निकालते हैं, इससे संसार ज्यादा बिगड़ता जा रहा है। तुम्हें क्या लगता है? इसलिए थोड़ा हम सोचें तो क्या हर्ज है?
प्रश्नकर्ता : गलतियाँ निकालें तो फिर उनसे फिर से गलती नहीं होगी न?
दादाश्री : अहोहो, अर्थात् उपदेश देने के लिए! तब भूल निकालने में हर्ज नहीं, मैं आपसे क्या कहता हूँ भूलें निकालो, पर वह उसे उपकार समझे तब भूल निकालो। वह कहे कि अच्छा हुआ आपने मेरी भूल बताई। मुझे तो मालूम ही नहीं। बहन, तुम इनका उपकार मानती हो?
में शक्कर डालो साहब!' तब दादा (भाव से) डाल देते हैं। (चाय मीठी है, मीठी है ऐसा भीतर रखकर एडजस्टमेन्ट ले लेते हैं।) अर्थात् बगैर शक्कर चाय आए तब पी जाते हैं बस। हमें तो कुछ बखेडा ही नहीं न! और फिर वे शक्कर लेकर आए। मैंने पूछा, 'भाई, शक्कर क्यों लाया? ये चाय के कप-प्लेट ले जा!' तब बोला, 'चाय फीकी थी फिर भी आपने शक्कर नहीं माँगी!' मैंने कहा, 'मैं क्यों कहूँ? तुम्हारी समझ में आए ऐसी बात है।'
एक भाई से पूछा, 'घर में कभी पत्नी की भूल निकालते हो?' तब बोला, 'वह है ही भूलवाली, इसलिए भूल निकालनी ही पड़ेगी न!' देखो, यह अक्ल का बोरा ! बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं आए और मान बैठा है कि मेरी पत्नी भूलवाली है, लो!
प्रश्नकर्ता : कई लोग अपनी भल समझते हैं, पर सुधारते नहीं हों तब?
दादाश्री : वे कहने से नहीं सुधरनेवाले। कहने पर तो और उल्टा चलते हैं। वह तो किसी समय जब सोच रहा हो तब हम बतायें कि यह गलती कैसे सुधरेगी! आमने-सामने बातचीत करो, ऐसे फ्रेन्ड की तरह। वाइफ के साथ फ्रेन्डशिप (मित्रता) रखनी चाहिए। नहीं रखनी चाहिए? दूसरों के साथ फ्रेन्डशिप रखते हो न! फ्रेन्ड के साथ ऐसा क्लेश करते हो रोज़-रोज? उसकी भूलें डिरेक्ट (प्रत्यक्ष रूप से) नहीं बताते। क्योंकि फ्रेन्डशिप टिकानी है। और यह तो (उसके साथ) शादी की है, कहाँ जानेवाली है? ऐसा हमें शोभा नहीं देता। जीवन ऐसा बनाओ कि बगीचा लगे। घर में मतभेद नहीं हो, कुछ नहीं हो, घर बगीचा समान लगे। और घर में किसी को थोड़ी भी दख़ल नहीं होने दें। छोटे बच्चे की भी भूल, अगर वह जानता हो तो नहीं दिखा सकते। नहीं जानता हो तो ही भूल दिखा सकते हैं।
वह तो व्यर्थ पागलपन था, स्वामित्व सिद्ध करने का। अर्थात् स्वामित्व नहीं दिखाना चाहिए। स्वामित्व तो तब कहलाएगा जब सामनेवाला
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तब फिर उसका क्या अर्थ? जो भल वह जानती हो, तुम्हें वह भूल उसे बताने का क्या अर्थ है? उन्हें स्त्रियाँ कलमुँहा कहती हैं, कि 'कलमुँहा जब देखो तब बोलता रहता है।' जिस भूल को वह जानती हो, उस भूल को हमें नहीं निकालना चाहिए। दूसरा कुछ भी हुआ हो, या कढ़ी खारी हुई हो या फिर सब्जी बिगड़ गई हो, जब वह खायेगी तब उसे पता चलेगा या नहीं? इसलिए हमें कहने की ज़रूरत नहीं रहती पर जो भूल उसे मालूम नहीं हो वह हम बतायें तब वह उपकार मानेगी। बाक़ी वह जानती हो वह भूल दिखाना तो गुनाह है। हमारे लोग ही निकालते हैं।
मैं तो सांताक्रुज में तीसरी मंजिल पर घर में बैठा होऊँ और चाय आती है। तब किसी दिन जरा शक्कर डालना भूल गए हों तब पी जाता हूँ और वह भी दादा के नाम पर। भीतर दादा से कहता हूँ कि 'चाय