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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) दशा रागरहित की सबको जानना - ऐसी ज्ञान की दशा है। समझ में आया ? यह तो उसकी शक्ति है न ! — समयसार में आता है न ! शक्ति । आत्मज्ञानमय शक्ति है। सभी व्याख्या आ गयी है । समस्त विश्व के.... यह दसवीं ( शक्ति की) व्याख्या है । समस्त विश्व के विशेष भावों को जाननेरूप परिणमित ऐसे आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति । आत्मज्ञान सर्वज्ञत्वशक्ति इस प्रकार सर्व को जानते हैं, इसलिए व्यवहार हो गया, वह यहाँ नहीं और सर्व को जानते हैं, इसलिए राग हुआ, यह भी यहाँ नहीं । यह सर्वज्ञत्व, आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति। भगवान आत्मा में सर्वज्ञशक्ति है, गुण है, वह आत्मज्ञानमय दशा होकर सबको जानता है। वह आत्मज्ञानमय होकर, पर होकर, पर के कारण नहीं और पर को जानता है, इसलिए यहाँ सर्व को जाना, इसलिए विकल्प आया और पर को जाना, इसलिए यहाँ उपचार आया यह यहाँ नहीं है, भाई ! आहा... हा...! - ३४७ आत्मज्ञानमय सर्वज्ञत्वशक्ति । दर्शन में भी ऐसा लिया है। आत्मदर्शनमय सर्वदर्शीशक्ति । आत्मदर्शनमय सर्वदर्शीशक्ति । इस दर्शी शक्ति, ज्ञानशक्ति का स्वभाव ही स्वपने को पूर्ण देखना और पूर्ण जानना, उसमें सब जानना - देखना आ जाता है - ऐसी ही उसकी आत्मज्ञानमय और आत्मदर्शनमय शक्ति है। समझ में आया ? इन शक्तियों में तो बहुत वर्णन है, पूरातत्त्व भरा है न उसमें! इसलिए वही यहाँ कहते हैं । — समभाव की प्राप्ति को सामायिक कहते हैं। थोड़ा अर्थ किया है। यह भाव तभी सम्भवत होता है जब इस विश्व को .... निश्चयदृष्टि से देखे तो... इसमें यह कहा न? भाई ! सर्वजीव ज्ञानमय देखे, इसका अर्थ क्या हुआ ? क्या हुआ इसका अर्थ ? निश्चय से देखा; व्यवहार से देखना न रहा। मैं भी जैसे ज्ञानमय, वे भी ज्ञानमय । यह ज्ञानमय देखना इसमें कोई विकल्प नहीं, वह राग नहीं । यह स्वज्ञानमय, सब ज्ञानमय । निश्चय से मैं ज्ञानमय, निश्चय से सब ज्ञानमय - ऐसी आत्मज्ञान की पर्याय प्रगट होना, उसे समभाव कहते हैं। वह वीतरागभाव है। इसलिए कहा न, देखो न ! जो सम-भाव मुणेइ, सव्वे जीवा णाणमया, जो सम-भाव मुणेइ अरे... ! सर्व जीव को इतना सब देखने जाये, वहाँ इसे राग नहीं होगा ? कि नहीं। यह तो इस ज्ञान की पर्याय ऐसे सामर्थ्यवाली है कि
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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