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योगसार प्रवचन (भाग-२)
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परन्तु वह दुःखदायक नहीं है । विकल्प है, वह दुःखदायक है, इतना अन्तर है । इसलिए अहितकर है, छोड़ने योग्य है। समझ में आया ?
(नियमसार) पचासवीं गाथा में क्षायिक समकित को हेय कहा, परभाव कहा, परद्रव्य कहा - • उसका अर्थ उसका आश्रय करने से विकल्प उत्पन्न होता है, वह विकल्प दुःखरूप है। पर्याय दुःखरूप नहीं, क्षायिक समकित दुःखरूप नहीं; वह तो आनन्दरूप है। समझ में आया ? ऐसे क्षणिक है, वह दुःखरूप है - ऐसा भी नहीं (क्योंकि) क्षणिक तो केवलज्ञान भी क्षणिक है, सिद्ध की पर्याय भी क्षणिक है, समस्त पर्यायें क्षणिक है। सिद्ध की एक समय की पर्याय सिद्ध रहती है, दूसरे समय दूसरी होती है, पर्याय गुलाँट खाती है। ध्रुवरूप से कायम रहता है। एक समय की पर्याय अनन्त ज्ञान - दर्शन चतुष्टय प्रगट हुए वे एक समय रहते हैं, दूसरे समय दूसरे, तीसरे समय तीसरे, एक समय में दो पर्यायें नहीं रहतीं ।
(यहाँ कहते हैं) यह विकल्प का अंश जो होता है कि यह ठीक, उसमें यह राग का भाग आता है, इस कारण वह ज्ञाता - दृष्टा में दखल उत्पन्न करनेवाला है। समझ में आया? भगवान का मार्ग, आत्मा का मार्ग ऐसा है। आँख की पलक में तो थोड़ी रज समाहित हो परन्तु इसमें तो नहीं समा सकती, ऐसा प्रभु का मार्ग है, भाई !
मुमुक्षु : यह सिद्धभगवान है
अरहन्तभगवान है....
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उत्तर : यह जानना दूसरी बात है परन्तु इसमें भेद करके लक्ष्य वहाँ गया तो विकल्प उत्पन्न होता है ।
मुमुक्षु: सर्वज्ञ का ज्ञान तो जानता है।
उत्तर : (सर्वज्ञ) सब जानते हैं परन्तु उन्हें इच्छा नहीं है, राग नहीं है; राग नहीं न ! यह रागी है, इसलिए राग उत्पन्न होता है। भेद का ज्ञान करना, इस भेद का ज्ञान करना, वह राग का कारण नहीं है परन्तु रागी है, इसलिए भेद का ज्ञान करता है, तो रागी है तो राग उत्पन्न होता है। भेद का ज्ञान करना, वह राग का कारण होवे तो सर्वज्ञ सब देखते (-जानते) हैं, (उन्हें राग उत्पन्न होना चाहिए) ऐसा नहीं है। यहाँ रागी प्राणी है, राग के अंश में पड़ा है; इस कारण भेद का लक्ष्य करता है तो राग आये बिना नहीं रहता ।