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jainology
भगवान् अभिवाथ कथानक -
थे। चक्र के मुंह पर कौरव राजा के परिवार को स्थापित किया गया। चक्र, देख कर शत्र ने मैदान छोड़ा। जरासंध की ओर से दुर्योधन रुक्म और रुधिर भावनायधना था के मध्य में मगधाधिप जरासंध ५००० राजाओं के साथ था, सवा छह हजार, सामने आये। दुर्योधन से अर्जुन, रुक्म से नेमि और रुधिर से अनादृष्टि भिड़े।
राज्य सैनिक राजा के चारो ओर थे। जरासंध के पीछे गांधार और सौधव : छहों में भारी युद्ध हुआ, खूब बाण बरसे। महानेमि के प्रचण्ड बल से तीनों व्यूह रचना
राजा की नियुक्ति सेना के साथ की गई थी। बांई और मध्य देश के राजा, घबरा गये। रुक्म आदि की हार जान कर सात राजा सामने आये जिनको हंसमंत्री बोला - राजन्! रोहिणी के स्वयंवर में भी वसुदेव राजा ने . दाहिनी और सौ कौरव थे। सेनापति जोर-जोर से विरदावली सुन उछल रहे - महानेमि के आयुधों ने क्षण में काट गिराये। अमित बलधारी नेम ने दुश्मन हराया। राजपूती शान तभी रही जब समुद्रविजयजी आये। अब तो उनके राम :थे। चक्रव्यह के मंह पर शकट व्यह की रचना की गई। प्रत्येक चक्र की का झंडा काट दिया जैसे सिंह को देख कर बकरियाँ भाग जाती है उसी और कृष्ण दो बलवान पुत्र हैं जिनके लिए कुबेर ने द्वारिका नगरी बसाई है। : संधि संधि पर राजाओं को बिठाये गये। जरासंध के चक्रव्यूह रचना की बात : प्रकार जरासंध की सेना भाग गई। वीर पांडव उनके साथ हैं तो अरिष्टनेमिनाथ भी उनके साथ है जो पूरे विश्व :याटलों ने मनी तो उन्होंने गरुड व्यह की रचना की। व्यूह के मुख पर इधर यादव सेना में कोई भयंकर बीमारी फैल गयी जिससे सैनिक को एक ही क्षण में आज्ञा पालन करवा सकते हैं अतः हे मगधेश्वर! अपनी महातेजस्वी अर्ट कोटि कमार और मोर्चे को बलराम कृष्ण ने स्वयं अपने - रोगग्रस्त हो गये। श्री कृष्ण चिंतित हो गये, उन्होंने श्री नेमि से उपाय पूछा। शक्ति पर विचार करिये। शिशुपाल, रुक्म भी रुक्मणि के हरण के समय : अधिकार में रखा। वसदेव के अवर समख आदि लाख शुरवीर पुत्रों की: श्री कृष्ण को चिंताग्रस्त देख कर मातली बोला - यदि अरिष्टनेमि के स्नान हार चुके हैं। गंधार देश के शकुनि राजा, कुरुवंशी दुर्योधन भले ही छल : नियक्ति हरि के अंग रक्षक के रूप में की गई। उनके पीछे करोड़ रथ सहित ! के जल के छिंटे डाले जाएं तो यह उत्पात मिट सकता है। ज्योहि नेमप्रभु के विधान प्रवाण हा, पर युद्ध में नहीं है, अग देश के राजा कर्ण, सुभटों में : राजा उग्रसेन व उनके चार पत्र सेना ले कर खडे थे। सबसे पीछे धर, सारण, स्नान के जल के छीटें डाले त्योंहि सारी शरवीर सरदारों की जरा दर हो गई बलशाली है। अतः श्री कृष्ण की सेना के सामने आपका जोर चलने वाला शिसत्यक नामक पाँच राजाओं की नियक्ति की गयी थी। दाहिनी : और वे सारे उठ बैठे। प्रभु की रथ की रज भी जिसको लगी उनके सारे नहीं है। राम, हरि और अरिष्टनेमि जी ये तीनों ही समान है, इन तीनों को : ओर के छोर पर राजा समद्रविजय ने अधिकार रखा। पच्चीस लाख रथ : उपद्रव नष्ट हो गये, यह बात अपूर्व थी। जोड़ी का कोई वीर अन्यत्र मिलना मुश्किल है। श्री कृष्ण के अधिष्ठायक :उनके चारों ओर नियक्त थे। बांई ओर बलराम और पांडव, उनके पीछे : जरासंध ने अब पुनः हिंसक मंत्री को बुलाया और यादव सैन्य में भेज देव भी है जिनके सहारे छल कर कालकुंवर के प्राण हर लिये गये थे जब : पच्चीस लाख रथ देवनंदन के साथ थे। तत्पश्चात-चन्द्रयश. सिंहल, बबर.: कर समुद्रविजयजी से कहलवाया कि क्या आप मेरी ताकत को नहीं जानते कि आपने उन्हें इस बार युद्ध के लिए विवश किया है और वे अपनी रक्षा के : कम्बोज केरल और द्रविड इन छह राजाओं की साठ हजार फौज थी।: हैं अतः हरिहलधर को मुझे सौंप दो और इस युद्ध का अंत कर दो फिर लिए सैन्य सजा कर आये हैं अत: हे राजन्! मुझे पूरा विश्वास है कि अगर उनके पीछे रणकौशल कमार शांब और भान थे इस प्रकार श्री कृष्ण की आराम से जाकर अपना राज करो।। आप युद्ध करने का विचार त्याग देंगे तो निश्चय ही श्री कृष्ण द्वारिका लौट : आजा से गरुड व्यह की रचना की गयी।
संधि संदेश को जान कर समुद्रविजय जी कुपित होकर बोले - ध्यान जायेंगे और यह भयंकर त्रास नहीं होगा। ..
भाई प्रेम के कारण अरिष्टनेमि भी युद्ध में उतरे। यह जानकर शक्रेन्द्र : देकर सुन लेना घर में ऐसा अन्यायी जन्मा है कि जिसने अपने बाप और मंत्री की यह बात सुनकर जरासंध आग बबूला हो गया बोला-तूउनके सहयोग के लिए मातली नामक सारथि को भेजा। अरिष्टनेमि उस: भाई को भी नहीं छोड़ा अतः जो हरि हलधर की मांग करता है उसके कान यादवों से भ्रमित होकर शत्रु की प्रशंसा कर रहा है। श्रृगाल के शब्दों से शेर : शीयगामी रथ में विराजे जो शस्त्र सहित था। समद्र विजय ने श्रीकष्ण के खड़े कर दूंगा। उल्टे पैर मंत्री जरासंध के पास लौटा और बोला - नाथ! भयभीत होने वाला नहीं है। हे दुर्मति! यदि तू कायर है तो मेरे सामने से क्यों : ज्येष्ठ पत्र को दस व्यहका सेनापति बनाया। प्रात:काल होते ही दोनों दलों: यादव पूरे जोश में है अतः आप की मांग पूरी होने वाली नहीं है। नहीं हट जाता? ऐसी बातें करके तू दूसरों को भी कायर बनाना चाहता है? : में घोर यद हआ। मारकाट मची। लाशों पर लाशों के ढेर लगने लगे।: प्रातःकाल होते ही कर्ण ने सेनापति को युद्ध में चलने का आदेश अरे, उन यादवों के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ। चापलूसी से उस मंत्री : जरासंध के योद्धाओं ने परी ताकत लगा दी और श्री कष्ण की सेना को दिया। जरासंध के पास आकर युद्ध क्षेत्र में जाकर युद्ध करने की आज्ञा
मोति ने राजा को उत्तेजित किया। इतने में सायंकाल हुआ और रात्रि ने अपना डेरा : तितर बितर कर दिया तब श्रीकष्ण ने झंडा फहरा कर पुनः सेना को संगठित । मागा। जरास
: मांगी। जरासंध ने होशियार रहने का कह कर विदा दी। नाग की दैविक में आ डटा। चक्रव्यूह : किया और जरासंध की सेना पर धावा बोल कर उसे घेर लिया। महानेमिः शक्ति और मुद्गर हाथ में लेकर जब कर्ण आया तो सैनिक भागने लगे। की रचना की। १००० आरे (विभाग) किये। एक-एक आरे में हजार राजा : अर्जुन आदि को पुनः जोश आया और शंख बजा कर अपनी सेना को :
अर्जन आदि को पन: जोश आया और ख बजा कर अपनी सेना को: भीम और अर्जुन सामने जाने लगे तो युधिष्ठिर ने मना किया और बड़ा भाई बख्तर बध, एक एक राजा के साथ २००० रथ, एक हजार हाथी, पाँच : तैयार किया। अनाधष्ट देवदत्त और अर्जन ने मिल कर एक साथ चदाई का होने के कारण उनके साथ युद्ध नहीं करने की सलाह दी। वसुदेव जी और
कर्ण तथा गांगेय और उग्रसेन में परस्पर युद्ध हुए। विद्याधर के पुत्र भीष्म ने हजार घोड़े और सोलह हजार पैदल सैनिक और शूर शिरोमणि ८००० योद्धा " दी। तीनों महारथियों ने मिल कर चक्रव्यूह को तोड़ दिया। अपूर्व बल पराक्रम ।
આગમસાર