________________ उस पर तो ध्यान दिया न प्रभो, विकथा में समय गमाया है। शुद्धात्म रुचि न हुई मन में, ना मन को उधर लगाया है।। मैं समझ न पाया था अब तक, जिनवाणी किसको कहते हैं। प्रभु वीतराग की वाणी में, कैसे क्या तत्त्व निकलते हैं।। राग धर्ममय धर्म रागमय, अब तक ऐसा जाना था। शुभ कर्म कमाते सुख होगा, बस अब तक ऐसा माना था / / पर आज समझ में आया है कि वीतरागता धर्म अहा। राग भाव में धर्म मानना, जिनमत में मिथ्यात्व कहा / / वीतरागता की पोषक ही, जिनवाणी कहलाती है। यह है मुक्ति का मार्ग निरन्तर, हमको जो दिखलाती है।। (गुरु) उस वाणी के अन्तर्तम' को, जिन गुरुओं ने पहिचाना है। उन गुरुवर्यों के चरणों में, मस्तक बस हमें झुकाना है।। दिन रात आत्मा का चिंतन, मृदु सम्भाषण में वही कथन / निर्वस्त्र दिगम्बर काया से भी, प्रगट हो रहा अन्तर्मन / / निर्ग्रन्थ दिगम्बर सद्ज्ञानी, स्वातम में सदा विचरते जो। ज्ञानी ध्यानी समरससानी, द्वादश विधि तप नित करते जो / / चलते फिरते सिद्धों से गुरु, चरणों में शीश झुकाते हैं। हम चलें आपके कदमों पर, नित यही भावना भाते हैं।। हो नमस्कार शुद्धातम को, हो नमस्कार जिनवर वाणी। हो नमस्कार उन गुरुओं को, जिन की चर्या समरससानी / / दर्शन दाता देव हैं, आगम सम्यग्ज्ञान / गुरु चारित्र की खानि हैं, मैं बंदों धरि ध्यान / / प्रश्न 1. देव, शास्त्र और गुरु की स्तुति में से प्रत्येक की स्तुति की चार-चार लाइनें जो आपको रुचिकर हों, लिखिए तथा रुचिकर होने का कारण भी बताइये। 1. शुद्धात्मा का स्वरूप / 2. अन्तरंग भाव को। 3. लीन रहते हैं। 4. समतारस में निमग्न / (46) (47)