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के ई नारी अर्जिका भईं,
भर्ता के संग वन को गईं। के ई नर पशु देवी देव,
सम्यक् रत्न लह्यौ तहाँ एव ।।
पाठ १०
देव-शास्त्र-गुरु
इह विध सभा समूह सब, निवसै आनन्द रूप।
मानो अमृत रूप सौं, सिंचत देह अनूप ।। इसप्रकार वे उपदेश देते हुए अन्त में सौ वर्ष की आयु में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर के सुवर्णभद्रकूट से निर्वाण पधारे।
प्रश्न
१. कविवर पं. भूधरदासजी का संक्षिप्त परिचय दीजिए। २. पारसनाथ हिल के बारे में आप क्या जानते हैं ? ३. भगवान पार्श्वनाथ का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए। ४. "धरणेन्द्र-पद्मावती ने पार्श्वनाथ की रक्षा की थी" - इस संबंध में अपने
विचार व्यक्त कीजिए। ५. वह कौन-सी घटना थी, जिसे देखकर पार्श्वकुमार दिगम्बर साधु हो गये ?
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर समयसार जिनदेव हैं, जिन प्रवचन जिनवाणि। नियमसार निर्ग्रन्थ गुरु, करे कर्म की हानि ।।
(देव) हे वीतराग सर्वज्ञ प्रभो, तुमको ना अब तक पहिचाना। अतएव पड़ रहे हैं प्रभुवर, चौरासी के चक्कर खाना ।। करुणानिधि तुमको समझ नाथ, भगवान भरोसे पड़ा रहा। भरपूर सुखी कर दोगे तुम, यह सोचे सन्मुख खड़ा रहा ।। तुम वीतराग हो लीन स्वयं में, कभी ना मैंने यह जाना। तुम हो निरीह जग से कृतकृत', इतना ना मैंने पहिचाना ।। प्रभु वीतराग की वाणी में, जैसा जो तत्त्व दिखाया है। यह जगत स्वयं परिणमनशील केवलज्ञानी ने गाया है।। उस पर तो श्रद्धा ला न सका, परिवर्तन का अभिमान किया। बनकर पर का कर्ता अब तक, सत् का न प्रभो सम्मान किया।।
(शास्त्र) भगवान तुम्हारी वाणी में, जैसा जो तत्त्व दिखाया है।
स्याद्वाद नय अनेकान्त मय. समयसार समझाया है।। • प्रचलित मूलप्रति में “जो होना है सो निश्चित है, केवलज्ञानी ने गाया है" है पर बालकों की दृष्टि से कठिन जानकर उक्त परिवर्तन किया गया है। १. शुद्धात्मा (स्वभाव दृष्टि से कारणपरमात्मा और पर्याय दृष्टि से कार्य परमात्मा)।२. शुद्ध (निश्चय) चारित्र । ३. चौरासी लाख योनियाँ। ४. इच्छारहित । ५. जिन्हें कुछ करना बाकी न रहा हो, उन्हें कृतकृत्य कहते हैं । ६. वस्तुस्वभाव।
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