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२६. श्री प्रतिष्ठापनसमितिधारक मुनिराज पूजन
(तांटक) प्रतिष्ठापनासमिति यही व्युत्सर्गसमिति कहलाती है। परम संयमी मुनियों को यह निश्चय समिति सुहाती है।।१।। प्रासुक भू पर यत्नपूर्वक देखभाल करते मलत्याग। महामुनीश्वर शुद्ध स्वपरिणति से करते सदैव अनुराग ।।२।। हो प्रमाद से रहित यल से तन मल मूत्रादिक तजते। जीवरहित भूदेख त्यागमल निज स्वभावको ही भजते।।३।। प्रतिष्ठापनासमिति शुद्ध की पूजन करता आज विशेष ।
कब प्रभु ऐसा अवसर पाऊँ धारूँ ऐसा जिन मुनिवेश ।।४।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भववषट्।
(जोगीरासा) निज अनुभवरस नीर चढ़ाऊँ हृदय विवेक जगाऊँ। जन्म जरा मरणादि व्याधि हर शाश्वत निज पद पाऊँ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभु पाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनामितिधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
निज अनुभव चंदन की शोभा से शोभित हो जाऊँ। भवाताप की आग बुझाऊँ प्रभु शीतल हो जाऊँ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभु पाऊँ ।।२।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री प्रतिष्ठापनसमितिधारक मुनिराज पूजन
अक्षत शुद्ध स्वानुभव लाऊँ अक्षयपद प्रकटाऊँ। स्वपद निराहारी मैं पाऊँ परम तृप्त हो जाऊँ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भूपर तन मल त्यागू परम शान्ति प्रभु पाऊँ ।।३।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
अनुभवपुष्प सुगंधित लाऊँ महाशीलगुण पाऊँ। कामबाण विध्वंसक बनकर शीलसिन्धु उर लाऊँ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभु पाऊँ।।४।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
सुचरु स्वानुभव रसमय लाऊँ आत्मध्यान के द्वारा। क्षधाव्याधि सर्वाश नाशकर त्यागू भवदुःखकारा ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभु पाऊँ ।।५।। ॐ हीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
निज अनुभवघृत दीप ज्योति पा होऊँ आतमध्यानी। मोह क्षीणकर घाति चार हर होऊँ केवलज्ञानी।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभु पाऊँ।।६।। ॐ हीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
निज अनुभव की ध्यानधूप ले प्रभु वसुकर्म नशाऊँ। भव के सकल दोष क्षय करके ध्रुव सिंहासन पाऊँ।। प्रतिष्ठापनासमिति पालकर हे प्रभु निज में आऊँ।
प्रासुक भू पर तन मल त्यागूं परम शान्ति प्रभ पाऊँ।।७।। ॐ हीं श्री परमअहिंसामयीप्रतिष्ठापनासमितिधारकमुनिराजाय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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