SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८. श्री अचौर्यमहाव्रतधारक मुनिराजपूजन (कुण्डलिया) व्रत अचौर्य निश्चय सहित महाव्रती के पास । ग्रहण त्याग से रहित है निज का है विश्वास ।।१।। निज का ले विश्वास बढ़े शिवपथ पर आगे। सारे दोष विनाश किए तो भवदुःख भागे ।।२।। ज्ञानभाव से भूषित हैं ये मुनिवर के व्रत । इनने धारे हैं स्वेच्छा से पंचमहाव्रत ।।३।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सखी) मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। हैं क्रोधभाव परिहारी ।। जल लाऊँ प्रभु अविकारी। भवरोग सर्वथाहारी ॥१॥ ॐ हीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। हैं क्षमारूप भवतारी ।। शीतल चंदन गुण लाऊँ। शीतल छवि लख हर्षाऊँ ।।२।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। हैं मान कषाय विदारी ।। अक्षत लाऊँ धवलोज्ज्वल । पाऊँ पद अक्षय निर्मल ।।३।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमनिराजाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। दुःखकामबाण निर्वारी ।। ध्रुवपुष्प शीलमय लाऊँ। रागादिक दोष मिटाऊँ।।४।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। श्री अचौर्यमहाव्रतधारक मुनिराज पूजन मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। त्यागी सब मायाचारी ।। नैवेद्य स्वरसमय लाऊँ। चिर क्षुधारोग विनशाऊँ।।५।। ॐ हीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। सर्वाश लोभ परिहारी।। दीपक स्वज्ञान मय लाऊँ। कैवल्य चंद्रिका पाऊँ।।६।। ॐ हीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। चौकड़ी तीन निर्वारी ।। निज धर्म धूप ले पावन। हरते कर्मों के बंधन ।।७।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी। संसार दोष परिहारी ।। अविलम्ब ध्रौव्य धुन लाऊँ। ध्रुव महामोक्ष फल पाऊँ।।८।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय महामोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। मुनिवर अचौर्यव्रतधारी । हैं लौकिक अर्घ्य निवारी ।। पदवी अनर्घ्य पाते हैं। शिवसखतरु उपजाते हैं।।९।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। महार्य (चौपाई) ग्रहण त्याग से शून्य आत्मा। त्यागोपादान शून्य आत्मा ।। पर का ग्रहण अचौर्य विनाशक। है चोरी का भाव विघातक ।।१।। जो चोरी के कृत करते हैं। वे ही भवदधि में गिरते हैं ।। पर के भाव न छूना चेतन । भवदुःख होगा दूना चेतन ।।२।। बिना आज्ञा कुछ मत लो तुम । मत चोरी का पाप करो तुम ।। श्रेष्ठ महाव्रत अचौर्य धारा । निज स्वरूप को शुद्ध विचारो॥३॥ पर का ग्रहण महाव्रत घातक। निजस्वभाव ही शिवसुखदायक। शुद्ध अचौर्यमहाव्रतधारी। वे ही सच्चे भवदःखहारी ।।४।। (सोरठा) व्रत अचौर्य का भाव, जागे मेरे हृदय में। हो जाऊँ निर्लोभ, संतोषामृत पानकर ।। ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय अनर्घ्यपदप्राप्तये महायँ निर्वपामीति स्वाहा। 44
SR No.008373
Book TitleRatnatray mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2005
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size280 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy