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________________ श्रीसत्यमहाव्रतधारक मुनिराज पूजन १७. श्री सत्यमहाव्रतधारक मुनिराज पूजन (चौपई) निश्चय सत्यमहाव्रत जान । सौख्यस्वरूपी सत्य महान। परम सत्यव्रत ही शिवयान । हितमित प्रिय वच श्रेष्ठ प्रधान ।।१।। परहित गर्भित सत्यव्रती। निजहित भूषित महाव्रती। महामौन ही सत्य महान । सभी व्रतों का श्रेष्ठ वितान ।।२।। पूजन करूँ भाव से आज । ध्रुव निजपद पाऊँ जिनराज । महासत्य का सुन संदेश। धरूँ दिगम्बर जिनमुनिवेश ।।३।। ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (विजात) सहज स्वभावी सुसत्य जल की महान महिमा हृदय को भायी। जनम जरादिक विनाश करने की बेला अब तो सहज ही पायी ।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे।।१।। ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्य चंदन हमारे उर में महक रहा है। विनाश भवज्वर का यह समय पा हृदय हमारा चहक रहा है।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ।।२।। ॐ हीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्यअक्षत अनंत गुणमय अनंत बलमय । महान अक्षय स्वपद के दाता स्वरूप निज पा हुए हैं निर्भय ।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ।।३।। ॐ हीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्यपुष्पों की गंध पावन सहज मिली है। ये काम पीड़ा हई है निर्बल स्वशील गण छवि हृदय झिली है।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ।।४।। ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्य चरु पा हृदय हआ है हर्षित। क्षुधा की पीड़ा विनष्ट करके पवित्र अक्षय सुख होगा निश्चित ।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ।।५।। ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । सहज स्वभावी स्वज्योति निर्मित सुसत्यदीपक है आज जगमग। जगत का भ्रमतम मिटायेंगे हम शिवम् के पथ पर बढायेंगे पग ।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे।।६।। ॐ हीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्य निर्मित स्वधूप पावन है शुक्लध्यानी। ये कर्म आठों जलायेंगे हम मिलेगी सिद्धों की राजधानी ।। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ।।७।। ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्य तरु से ही मोक्षफल की भी प्राप्ति होगी। शिवम् सुन्दरम् हृदय बनेगा स्वसौख्य की ही तो व्याप्ति होगी। स्वसत्य निर्णय किए बिना प्रभु कभी भी समकित न पा सकेंगे। अगर न होगा स्वसत्यव्रत तो कभी भी शिवपुर न जा सकेंगे ॥८॥ ॐ ह्रीं श्री सत्यमहाव्रतधारकमुनिराजाय महामोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। सहज स्वभावी सुसत्य के ही महाव्रती बनके अर्घ्य लाएँ। अनर्घ्य पद की महान महिमा के गीत हे प्रभु सदा ही गाएँ।।
SR No.008373
Book TitleRatnatray mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2005
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size280 KB
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