________________
.
.
.
(32) और कष्ट देने वालों को होगा?'
साधर्मिकों की भक्ति करने से श्री संभवनाथ भगवान ने अपने तीसरे पूर्व भव में तीर्थंकर बनने की पुण्य उपार्जन किया था।
"आचार्य हेमचन्द्र के उपदेश से राजा कुमारपाल ने श्रावक श्राविकाओं की भक्ति में 14 करोड़ रु. का व्यय किया था।
पहिले मांडवगढ़ में जैनों के 1 लाख परिवार रहते थे। बाहर से पधारे हुए श्रीवक को वे प्रति घर से 1 रुपया और 1 ईंट मैंट देते थे। जिससे वह आगन्तुक श्रावक लखपति बन जाता था व लाख ईंटों से उसका निजी मकान भी बन जाता
बरातिओं को बढ़िया भोजन भी बेमौल करीमा और गुरुओं के दर्शनार्थ आए। हुए श्रावकों से साढ़े भोजन का भी मोल लेना। यह कहा सकाउचिल माना जायेगा?'
श्रावक भी सुपात्र है, इसीलिए तो सिर्फ 12.50 नये पैसे की कमाई वाला पुणियां श्रावक हमेशा एक श्रावक या श्राविका की समकितः शुद्धि हेतु अपमे घर भक्ति से निःशुल्क भोजन कराता था।