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________________ დაადგილდოვადუსამდ%დმოდიოდა დ ა იმავე დადგეს विद्युत-इलेक्ट्रिक साधन सजीव-सचित्तही हैं महाप्रज्ञजी याने बुद्धि के धणी प्रज्ञावान कह सकते हैं किन्तु इलेक्ट्रीक साधन के बारे में जो उत्सूत्र प्ररुपणा मान्यता प्रदान की है उसको जैन | समाज, तेरापंथ को कभी नहीं बख्शेगा। मान्यता भेद अलग चीज है। किन्तु उसको छुट-छाट बिना किसी आगम प्रमाण का हवाला दिए संघ के बीच खुला करना अलग वस्तु है। स्थानकवासी श्रमण संघ व मंदिर मार्गी में भी क्वचीत माईक वगैरे का उपयोग करने लग गये किन्तु उसको अचित्त कहने का दुःसाहस तो किसी भी माई के लाल ने आज तक नहीं किया था। श्रमण संघ ने तो माईक में बोलना पड़े तो 250 गाथा के स्वाध्याय की परंपरा भी आलोचना रूप में तय कर रखी है। याने पापभिरूता-पाप का डर है। मात्र तेउकाय (अग्निकाय) ही नहीं बिजली के उत्पादन-उत्पत्तिप्रारम्भ से अंत तक छओं काय के जीवों की विराधना रही हुई हैं। साथ ही पंखे वगैरे चालु करने कराने में अनुमोदना व शिथिलता के पाप से कभी बच नहीं सकते कई बार तो कबुतर आदि पक्षियों की भी साक्षात् हिंसा पंखे से हो जाती है व करंट आदि लगने से स्वयं की आत्म विराधना का भय व पशु-पक्षी मनुष्य आदि भी करंट से मरने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। महाप्रज्ञजी कहते है कि 'माईक हो के घड़ी अपन उसको सचित्त नहीं मान सकते क्योंकि आगम के आधार से वे सिद्ध नहीं हो सकते'प्रज्ञावान महाप्रज्ञाजी विज्ञान के साधन अधुरे हो सकते है विज्ञान कभी सिद्ध नहीं भी कर सकें किन्तु आगम के अकाट्य तर्क व कई प्रमाण अपने पास मौजुद है। इसके आधार पर लाइट सचित्त हो तो सजीव ही है। अतः Solar cell drycell bettery वगैरे से चलते साधन माइक A.C. पंखा T.V. वगैरे बिजली साधनों में अग्निकाय की उत्पत्ति विराधना माननी ही पड़ेगी और उसका उपयोग संयमी आत्मा को कभी भी कल्पे
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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