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________________ ૫૮૮ જે બૃહદ્ ગુજરાત NIORG पू. मुनिराज श्री विद्या विजयजी म. का मेवाड़ के संबंध में अनुभव पूर्ण निवेदन समय के अभाव तथा अन्य प्रवृत्तियों के कारण केवल थोड़े समय तक ही हमें मेवाड़ में विचरने का सौभाग्य प्राप्त हो सका है । उस अनुभव के आधार पर मैं यह बात कह सकता हूं कि मेवाड़ धर्म प्रधान और इतिहास प्रधान देश है । पहाड़ो तथा पत्थरों वाला देश होने पर भी कांटों तथा ककरों वाला देश होते हुए भी सरल तथा भक्ति वाला देश है । यह देश जिस तरह धर्म प्रचार की भावना रखने वाले उपदेशकों के लिए उपयोगी है । उसी तरह ऐतिहासिक खोज करने वालों के लिए भी सचमुच ही उपयोगी है । यहां न संघ सोसायटी के झगड़े हैं और न पदवियों की प्रतिस्पर्धा है । कोई भी साधु अपने चारित्र धर्म में स्थिर रहकर शान्त वृत्ति से उपयोग पूर्वक उपदेश दे, तो वह बहुत कुछ उपकार कर सकता है । उपकार करने के लिए मेवाड़ अद्वितीय क्षेत्र है । अपने निमित्त ग्राम-ग्राम में क्लेश होने पर भी, घर घर में आग की चिनगारियां उड़ने पर भी, गृहस्थों द्वारा अपमान तथा तिरस्कार सहन करने पर भी, गृहस्थों की साधुओं पर अश्रद्धा होने पर भी, 'अति परिचयादवज्ञा' का अनुभव रात दिन करते रहने पर भी दुःख तथा आश्चर्य का विषय है, कि हमारे पूज्य मुनिराज व साध महाराज गुजरात, काठियावाड़ को क्यों नहीं छोड़ते होंगे? और ऐसे क्षेत्रों में क्यों नहीं निकल पड़ते होंगे कि जहां एकान्त उपकार और शासन सेवा के अतिरिक्त दूसरी किसी चीज का नाम नहीं है। __ पूज्य मुनिवरो ! गुजरात काठियावाड को छोड़कर जरा बाहर निकलो और अनुभव प्रप्त करो और फिर देखोगे कि तुम्हारी आत्मा कितनी प्रसन्न होती है ! चारित्र की शुद्धि, धर्म से विमुख हुए लोगों को धर्म में लाना, अजैन वर्ग पर सच्चे त्याग की छाया डालनी, आदि बातों का जब आपको अनुभव होगा, तब आपको इस बात का विश्वास हो जायगा कि वास्तविक उपकार का कार्य तो यहीं होता है। अन्त में 'मेरी मेवाड़ यात्रा' में आलेखित इस संक्षिप्त अनुभव पर हमारे कोई भी साधु-साध्वीजी म. मेवाड़ में पधारने हेतु जाग्रत हो और ऐसे देशों में विचरने के उद्देश्य से बहार निकल पड़े, यही अन्तःकरण से चाहता हुआ, अपने इस अनुभव-वृत्त को यहां खतम अपनी लेखनी को यहीं विराम देता हैं । बरलुट (सिरोही. राज.) -विद्या विजय अषाढ़ सुदी १ वीर सं. २४६२ ('मेरी मेवाड़ यात्रा' पुस्तक से साभार उद्धृत) સૌજન્યઃ મેવાડ દેશોદ્ધારક પ. પૂ. આ.શ્રી જિતેન્દ્રસૂરિજી મ.સા.ની સપ્ટેરણાથી. प्रेरऽनिश्रा : ५. ५. मा.श्री गुरत्जसूरि म.सा. तथा ५. पं.श्री रश्मिरत्नविषय म.सा. ભાવનગરનિવાસી ધર્મપ્રેમી, સુખી અને લબ્ધપ્રતિષ્ઠિત પરિવારના શ્રી જયેશભાઈ શાહ (ઉ.વ. ૪૦), शनाजेन शाह (8.4.3८), रीतु भारी (6.4. १४) मने हाsभार (6.4. १०) . આ પરિવારની એકી સાથે ચાર દીક્ષા પ્રસંગની સ્મૃતિ નિમિત્તે તા. ૭-૨-૨૦૦૩ મહા સુદી ૬ 0 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005143
Book TitleBruhad Gujarat Pratibha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2003
Total Pages844
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size40 MB
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