________________ RRRRRRRRE नियुक्ति-गाथा- 5 00000009 - 323333322323333333333333333333333333333333333 / सत्त्वानां संख्येयं कालम्, असंख्येयवर्षायुषां पल्योपमादिजीविनां चासंख्येयमिति गाथार्थः // 4 // (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार धारणा को -जिसका स्वरूप बताया जा चुका हैa (कालमान की दृष्टि से) समझना चाहिए। तात्पर्य यह है- अवाय के बाद में होने वाली अविच्युतिरूप धारणा और इसी तरह , ल स्मृति रूप धारणा भी अन्तर्मुहूर्त होती है, किन्तु वासना रूप स्मृति जो स्मृति रूप धारणा का a बीज होती है और तदावरणक्षयोपशम रूप कही जाती है, वह तो संख्यात वर्ष की आयु वाले , & प्राणियों में संख्यात वर्षों तक, और पल्योपम आदि असंख्यात वर्षों की आयु वाले प्राणियों में असंख्यात वर्ष की होती है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ ||4|| a विशेषार्थ धारणा की प्रबलता से प्रत्यभिज्ञान एवं जातिस्मरण ज्ञान भी हो सकता है। अवाय हो जाने / पर यदि उपयोग की स्थिरता बनी रहे तो उसे अवाय नहीं, अपितु अविच्युति धारणा कहेंगे। a अविच्युति धारणा से वासना पैदा होती है। वासना जितनी दृढ़ होगी, निमित्त मिलने पर वह स्मृति को अधिकाधिक उद्बोधित करने में कारण बनेगी। इस वासना का कालमान संख्यात, असंख्यात वर्ष का बताया गया है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) इत्थमवग्रहादीनां स्वरूपमभिधाय इदानीं श्रोत्रेन्द्रियादीनां प्राप्ताप्राप्तविषयतां प्रतिपिपादयिषुराह (नियुक्तिः) पुढे सुणेइ सदं रूवं पुण पासई अपुढे तु / गंधं रसं च फासं च बद्धपुढे वियागरे // 5 // [संस्कृतच्छायाः-स्पृष्टं शृणोति शब्दरूपं पुनः पश्यति अस्पृष्टं तु गन्धं रसंच स्पर्श च बद्धस्पृष्टं & व्याशृणीयात् / / (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, अवग्रह आदि का स्वरूप बता कर, अब नियुक्तिकार , श्रोत्र आदि इन्द्रियों की 'प्राप्तविषयता' या 'अप्राप्त-विषयता' का प्रतिपादन करने हेतु गाथा कह रहे हैं / (r)(r)(r)(r)(r)(r)caen@cR@@@ce@@ 57