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________________ aaaaaaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 099999999 - - 3333333333333333333333333333333 (हरिभद्रीय वृत्तिः) अन्ये त्वेवं पठन्ति 'मुहुत्तमन्तं तु'।मुहूर्तान्तस्तु द्वे पदे ।अयमर्थः-अन्तर्भध्यकरणे, & तुशब्द एवकारार्थः, स चावधारणे।एतदुक्तं भवति-ईहावायौ मुहूर्तान्तः, भिन्नं मुहूर्त ज्ञातव्यौ & भवतः, अन्तर्मुहूर्तमेवेत्यर्थः। कलनं कालः,तंकालम्, न विद्यते संख्या इयन्तः पक्षमासर्वयनसंवत्सरादय इत्येवंभूता यस्यासावसंख्यः, पल्योपमादिलक्षण इत्यर्थः।तं कालमसंख्यम्, तथा संख्यायत इति संख्यः, . इयन्तः पक्षमासनयनादय इत्येवं संख्याप्रमित इत्यर्थः।तं संख्यं च, चशब्दात् अन्तर्मुहूर्त च। (वृत्ति-हिन्दी-) अन्य आचार्य तो प्रकृत गाथा (के 'मुहुत्तमद्धं') की जगह 'मुहुत्तमत्तं' -ऐसा पाठ मानते हैं। यहां मुहूर्त और अन्त -ये दो पद हैं। 'अन्त' का यहां अर्थ हैमध्यवर्ती, अन्तर्गत / अतः ‘मुहूर्तान्त' का भी अर्थ होगा- अन्तर्मुहूर्त / 'तु' पद 'एव' (ही) अर्थ है को, अर्थात् अवधारण को व्यक्त करता है। फलितार्थ होगा- ईहा व अवाय -ये भिन्न a (आंशिक, अपूर्ण) मुहूर्त तक होते हैं, अर्थात् अन्तर्मुहूर्त होते हैं। काल का अर्थ है- कलन (परिगणन)। उस 'कलन' रूप काल के अनुरूप ही है 'धारणा' का काल होता है। [जैसे, जिसका काल असंख्य है -अर्थात् जिसकी आयु असंख्यात " है, उसकी धारणा असंख्यात काल की होगी।] असंख्यात यानी जिसकी संख्या (परिगणना) 4 इतना पक्ष, इतने मास, ऋतु, अयन, संवत्सर आदि -इस रूप में संभव न हो, अर्थात् & पल्योपम आदि काल / उस (असंख्यात कलन वाले के धारणा असंख्यात काल तक होती है।) संख्य काल वह है जिसकी संख्या (परिगणना) की जा सके। -इतने पक्ष, मास, ऋतु, a अयन आदि -इस रूप में जो प्रमित यानी परिगणित की जा सके, वह संख्य (संख्यात) है। ca उस संख्यात काल वाले के धारणा संख्यात काल की होती है। गाथा में पठित 'च' शब्द से , & अन्तर्मुहूर्त काल का भी ग्रहण होता है। (अर्थात् धारणा अन्तर्मुहूर्त से लेकर, संख्यात व a असंख्यात समय तक रह सकती है।) (हरिभद्रीय वृत्तिः) धारणा अभिहितलक्षणा भवति ज्ञातव्या। अयमत्र भावार्थ:- अवायोत्तरकालं अविच्युतिरूपा- अन्तर्मुहूतं भवति, एवं " स्मृतिरूपाऽपि, वासनारूपा तुतदावरणक्षयोपशमाख्या स्मृतिधारणाया बीजभूता संख्येयवर्षायुषां / B eca@ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ 22222222222 - 56
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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