________________ acacecaceae श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9200000 (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) जघन्य नैश्चयिक अर्थावग्रह का स्वरूप पहले बताया ca जा चुका है, उसका काल एक एक समय है, अर्थात् वह एक ही समय तक रहता है। यहां a काल का अर्थ है- परमसूक्ष्म समय / उसे (और उसकी सूक्ष्मता को) तीर्थंकर के प्रवचन : a (आगम) में प्रतिपादित दो दृष्टान्तों के आधार पर समझा जा सकता है। उनमें एक है उत्पलपत्रशतभेद, दूसरा है- जीर्ण साड़ी का फाड़ा जाना। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि सांव्यवहारिक अर्थावग्रह व व्यञ्जनावग्रह -ये दोनों पृथक्-पृथक् तो अन्तर्मुहूर्त काल तक व रहते हैं। ईहा और अवाय -इन दोनों का समास कर 'ईहावाया' (ईहापायौ) यह पद गाथा 4 में प्रयुक्त है। प्राकृत भाषा की शैली (व्याकरण-नियम) के अनुसार यहां द्विवचन की जगह a बहुवचन प्रयुक्त हुआ है। कहा भी है (प्राकृत भाषा में) द्विवचन में बहुवचन होता है और चतुर्थी को षष्ठी विभक्ति से कहा है 4 जाता है, जैसे दो हाथ, दो पांव (द्वौ हस्तौ, द्वौ पादौ) को प्राकृत में (बहुवचनान्त) हत्था , a (हस्ताः) पाया (पादाः) -इस प्रकार कहा जाता है। इसी तरह 'नमोऽस्तु देवाधिदेवेभ्यः' इस : चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर 'नमोऽत्यु देवाहिदेवाणं' में (नमोऽस्तु देवाधिदेवानाम् -इस . प्रकार) षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। विशेषार्थ प्रस्तुत गाथा की व्याख्या में आचार्य हरिभद्रसूरि ने नैश्चयिक और सांव्यवहारिक अवग्रह की a चर्चा की है। अवग्रह के दो भेद हैं- जघन्य और उत्कृष्ट / इनमें जघन्य अर्थावग्रह नैश्चयिक ही कहा, जाता है और उत्कृष्ट अर्थावग्रह व्यावहारिक है। नैश्चयिक अर्थावग्रह का कालमान एक समय और सांव्यवहारिक अर्थावग्रह का समय अन्तर्मुहूर्त है। उक्त निरूपण का मूल स्रोत विशेषावयक भाष्य है। अवग्रह के बारह प्रकार बताये गए हैं। उनकी एक समय की अवस्थिति वाले अवग्रह के साथ संगति , नहीं बैठती है। इस समस्या को ध्यान में रखकर जिनभद्रगणि ने अवग्रह के नैश्चयिक और सांव्यवहारिक ये दो भेद किए हैं। अव्यक्त सामान्य मात्र ग्रहण करने वाला नैश्चयिक अवग्रह है। " अपाय के पश्चात् उत्तरोत्तर पर्याय का ज्ञान करने के लिए जो अवग्रह होता है वह सांव्यवहारिक है। उत्पलपत्रशतभेद-उत्पल कमल / शतपत्र सैकड़ों पत्ते / भेद छेदना / जिस प्रकार कमल . के सैकड़ों पत्रों को सुई से छेद करें तो एक साथ ही उन सबका छेदन हो जाता है। किन्तु वस्तुतः प्रत्येक पत्र को पृथक्-पृथक् सूई छेदती हुई जाती है। प्रत्येक पत्ते के छेदने में असंख्यात समय लगता - 54 0 0@cr@Recen@@@ce@9808808