________________ Rcaca cacacece श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2099 90 90900 (हरिभद्रीय वृत्तिः) अन्ये त्वेवं पठन्ति- 'अत्याणं उगहणंमि उगहो' तत्र अर्थानामवग्रहणे सति अवग्रहो , & नाम मतिभेद इत्येवं बुवते; एवं ईहादिष्वपि योज्यम्, भावार्यस्तु पूर्ववदिति।अथवा प्राकृतशैल्या , 'अर्थवशाद्विभक्तिपरिणामः' इति।यथाऽऽचाराने- “अगणिं च खलु पुछ एगे संघायमावजंति" इत्यत्र अग्निना च स्पृष्टाः,अथवा स्पृष्टशब्दः पतितवाची, ततश्चायमर्थः-अग्नौ च पतिता 2 / 'एके' शलभादयः 'संघातमापद्यन्ते' अन्योऽन्यगात्रसंकोचमासादयन्तीत्यर्थः, तस्माद् " अग्निसमारम्भोऽनेक-सत्त्वव्यापत्तिहेतुः इत्यतो न कार्यः, इत्यादिविचारे द्वितीया तृतीयार्थे , सप्तम्यर्थे च व्याख्यातेति। एवमत्रापि सप्तमी प्रथमार्थे द्रष्टव्येति गाथार्थः॥३॥ (वृत्ति-हिन्दी-) अन्य आचार्य तो (प्रस्तुत गाथा को) इस प्रकार पढ़ते हैं- 'अत्थाणं उग्गहणंमि उग्गहो' (तह वियारणे ईहा। ववसायंमि अवाओ, धरणंमि य धारणा बिंति।) इत्यादि। इसकी व्याख्या भी वे इस प्रकार करते हैं- पदार्थों के अवग्रहण होने पर अवग्रह 4 नाम का मति-भेद (मतिज्ञान का एक भेद) होता है (-ऐसा तीर्थकरादि कहते हैं)। इस पाठ 2 ca में भावार्थ तो पूर्ववत् ही है (शब्द भेद होने पर भी भाव-भेद नहीं है)। अथवा, प्राकृत शैली (अर्थात् प्राकृत व्याकरण-नियमों) के अनुसार अर्थ करते समय प्रयोजनवश (कुछ) विभक्यिों & का परिवर्तन भी किया जाता है। जैसे- आचारांग (1/1/4/85) में कहा गया है- “अग्नि & को स्पृष्ट कुछ (जीव) संघात को प्राप्त होते हैं। किन्तु अर्थ किया जाता हैं- अग्नि से स्पृष्ट / 44 अथवा 'स्पृष्ट' का अर्थ 'गिरे हुए' (पतित) होता है, अतः अर्थ किया जाता है- अग्नि में गिरे ca हुए शलभ (पतंगे) आदि जीव संघात यानी परस्पर शरीर-संकोच (शारीरिक रगड़ आदि) को . & प्राप्त करते हैं। इसलिए अग्नि का समारम्भ (जलाने का कार्य) नहीं करना चाहिए, क्योंकि " & वह कार्य अनेक प्राणियों की हिंसा का हेतु होता है। इत्यादि (पूर्वोक्त) अर्थ-विचार में (अग्नि & शब्द में) द्वितीया विभक्ति जो थी, उसे तृतीया अर्थ में अथवा सप्तमी अर्थ में मान कर & व्याख्यान किया गया है, उसी प्रकार प्रकृत गाथा-अर्थ में भी अवग्रह की सप्तमी विभक्ति को प्रथमा अर्थ में संयोजित करना चाहिए (अतः अर्थ होगा- जो अवग्रहण होता है, वह अवग्रह ca है, इत्यादि)। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 3 // विशेषार्थ तृतीया व सप्तमी के अर्थ में द्वितीयाः प्राकृत व्याकरण के अनुसार तृतीया व सप्तमी विभक्ति के | स्थान पर द्वितीया विभक्ति भी क्वचित् होती है। आ. हेमचन्द्र ने 'सप्तम्या द्वितीया' (हेम व्याकरण, 21 (r)(r)(r)(r)RO0&cr@nece@98088808 -222382322322233333333333333333333333333333333 - / 52