________________ caca cace a cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0999999 (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___ एतदुक्तं भवति-अवग्रहादुत्तीर्णः अवायात्पूर्वं सद्भूतार्थविशेषोपादानाभिमुखोऽसद्भूतार्थ& विशेषत्यागाभिमुखश्च 'प्रायो मधुरत्वादयः शङ्खशब्दधर्मा अत्र घटन्ते, न खरकर्कशनिष्ठुरतादयः & शार्ङ्गशब्दधर्माः' इति मतिविशेष ईहति।विशिष्टोऽवसायो व्यवसायः, निर्णयो निश्चयोऽवगम व इत्यनर्थान्तरम् / तं व्यवसायं च, अर्थानामिति वर्त्तते, अवायं बुवत इति संसर्गः। एतदुक्तं भवति-शाङ्क्ष एवायं शार्ङ्ग एव वा इत्यवधारणात्मकः प्रत्ययोऽवाय इति।चशब्द एवकारार्थः, ca स चावधारणे, व्यवसायमेवावायं ब्रुवत इति भावार्थः। (वृत्ति-हिन्दी-) तात्पर्य यह है- “अवग्रह (की स्थिति) से पार होकर, और 'अवाय' 1 होने से पहले, अर्थ के सद्भूत अर्थ के विशेष धर्मों के उपादान (ग्रहण) की ओर अभिमुख " ca होने वाला, शङ्खीय ध्वनि के 'मधुरत्व आदि जो धर्म हैं, वे प्रायः यहां घटित हो रहे हैं, शृंगी . a (वाद्य) की ध्वनि के धर्म -तीखापना, कर्कशपना व निष्ठुरपना आदि- घटित नहीं होते' - इस प्रकार जो मतिविशेष होता है, वह 'ईहा' है।' व्यवसाय का अर्थ है- विशिष्ट (विशेषों , & का) अवसाय (निर्णय)। अवसाय, निर्णय व अवगम -ये एकार्थक (पर्याय) हैं। यहां 'कहते है ल हैं (ब्रुवते) -इस की अनुवृत्ति की जानी चाहिए, अतः अर्थ होगा- पदार्थों के व्यवसाय को , ca 'अपाय' कहते हैं। तात्पर्य यह है- 'यह शब्द शंख का ही है, या शृंगी वाद्य का ही है' -इस " << प्रकार (किसी एक विशेषता की ओर झुकती हुई) अवधारणात्मक प्रतीति,को 'अवाय' कहा // ca जाता है। (गाथा में पठित) 'च' शब्द 'ही' अर्थ को, अर्थात् अवधारण को व्यक्त करता है, अतः & अर्थ होगा- व्यवसाय को ही 'अपाय' कहते हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) धृतिर्धरणम्, अर्थानामिति वर्त्तते, परिच्छिन्नस्य वस्तुनोऽविच्युतिस्मृतिवासनारूपं तद्धरणं पुनर्धारणां ब्रुवते।पुनःशब्दोऽप्येवकारार्थः, स चावधारणे, धरणमेव धारणां ब्रुवत इति, " & अनेन शास्त्रपारतन्त्र्यमाह, इत्यं तीर्थकरगणधरा ब्रुवत इति। एवं शब्दमधिकृत्य - श्रोत्रेन्द्रियनिबन्धना अवग्रहादयः प्रतिपादिताः। शेषेन्द्रियनिबन्धना अपि रूपादिगोचराः " C स्थाणुपुरुष-कुष्ठोत्पल-संभृतकरिल्लमांस-सर्पोत्पलनालादौ इत्यमेव द्रष्टव्याः।एवं मनसोऽपि स्वप्ने शब्दादिविषया अवग्रहादयोऽवसेया इति।अन्यत्र चेन्द्रियव्यापाराभावेऽभिमन्यमानस्येति।। (वृत्ति-हिन्दी-) पदार्थों की धृति, या उनके धरण को, अर्थात् ज्ञात वस्तु की अविच्युत 333333333333333333333333333333333333333333333 &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& && - 48(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)R@8