________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 cacacancace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2020 20 99900(हरिभद्रीय वृत्तिः) & तत्र व्यञ्जनावग्रह इति कः शब्दार्थः?, उच्यते, व्यज्यतेऽनेनार्थः प्रदीपेनेव घट इति / व्यञ्जनम्, तच्च उपकरणेन्द्रियं शब्दादिपरिणतद्रव्यसंघातो वा, ततश्च व्यञ्जनेन उपकरणेन्द्रियेण , शब्दादिपरिणतद्रव्याणां च व्यञ्जनानां अवग्रहो व्यञ्जनावग्रह इति। अयं च नयनमनोवर्जेन्द्रियाणामवसेय इति।न तु नयनमनसोः, अप्राप्तकारित्वात्।अप्राप्तकारित्वं चानयोः “पुढे सुणेइ सदंरूवं पुण पासई अपुढेतु" इत्यत्र वक्ष्यामः।तथा च व्यञ्जनावग्रहचरमसमयोपात्तशब्दाद्यर्थावग्रहणलक्षणोऽर्थावग्रहः, सामान्यमात्रानिर्देश्य-ग्रहणमेकसामयिकमिति " भावार्थः। तथा' इत्यानन्तर्ये 'विचारणम्' पर्यालोचनम् अर्थानामित्यनुवर्त्तते, ईहनमीहा ताम्, 7 बुवत इति सम्बन्धः। ca (वृत्ति-हिन्दी-) इन (दोनों) में 'व्यञ्जनावग्रह' का शाब्दिक अर्थ क्या है? बता रहे हैंजिस प्रकार दीपक से घड़े की अभिव्यक्ति होती है, उस प्रकार जिससे पदार्थ की अभिव्यक्ति , होती है, उसे 'व्यञ्जन' कहते हैं। (ज्ञान की) उपकरण इन्द्रियां 'व्यञ्जन' हैं, अथवा शब्द आदि रूप में परिणत द्रव्य-समूह (भी) 'व्यञ्जन' हैं। इस प्रकार 'व्यञ्जन' रूप उपकरण-इन्द्रिय ce द्वारा शब्द आदि परिणत द्रव्य रूप 'व्यञ्जनों' का (प्रथम) अवग्रहण (ही) व्यअनावग्रह है। नेत्र और मन -इन दो को छोड़कर, अन्य इन्द्रियों से ही व्यञ्जनावग्रह का होना मानना चाहिए।" * नेत्र व मन -इन दोनों का व्यञ्जनावग्रह नहीं होता, क्योंकि वे (नेत्र व मन) अप्राप्तकारी हैं। " & इनकी अप्राप्तकारिता का निरूपण 'स्पृष्टं शृणोति शब्दं रूपं पुनः पश्यति अस्पृष्टं तु' (नन्दीसूत्र- . & 3/सूत्र-69, नियुक्ति गाथा-5, विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-336) इस गाथा (के व्याख्यान) में & आगे करेंगे / और, इस व्यञ्जनावग्रह के अंतिम समय में शब्दादि अर्थ का जो अवग्रहण होता & है, वह 'अर्थावग्रह' है, वह ग्रहण वस्तु का सामान्य मात्र तथा 'अनिर्देश्य' रूप में होता है ब (अर्थात् उस समय उस पदार्थ का नाम, जाति आदि से निर्देश करना सम्भव नहीं होता) और 1 c. उसका काल-मान ‘एक समय' मात्र होता है- यह भावार्थ है। (गाथा में प्रयुक्त) 'तथा' यह 1 ca पद 'आनन्तर्य' ('पूर्वोक्त के बाद' -इस) अर्थ को व्यक्त कर रहा है। यहां वाक्य की पूर्णता , & हेतु ‘अर्थानाम्' (अर्थों के विषय में) और 'ब्रुवते (कहते हैं) -इन दो पदों की अनुवृत्ति होती " & है, फलस्वरूप पूरा वाक्य इस प्रकार निष्पन्न होगा- यहां अर्थों- पदार्थों के सम्बन्ध में जो विचारणा, पर्यालोचना होती है, उसे ईहा कहते हैं। ईहा का अर्थ है- ईहन (अर्थात् विशेषज्ञान की ओर अभिमुख होना)। - 46 @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @