________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 -acca caca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000उत्पत्ति में किसी इन्द्रिय अथवा शब्द का योग नहीं होता। इस अर्थ की अभिव्यक्ति अदृष्ट, अश्रुत और अवेदित शब्द से होती है। जो स्वयं अदृष्ट है, या जिसे कभी सुना नहीं है, या जिसके बारे में कभी चिंतन नहीं किया, उस अर्थ का तत्काल यथार्थ रूप में ग्रहण करने की क्षमता जिससे होती है, उस र बुद्धि का नाम है- औत्पत्तिकी। ज्ञान और ज्ञानी के प्रति जो प्रकृष्ट विनय होता है, उससे उत्पन्न बुद्धि / & वैनयिकी बुद्धि होती है। किसी एक कार्य में मन का अभिनिवेश हो जाता है। उस अभिनिवेश के 2 & कारण कार्य की सफलता हो जाती है। यह कर्मजा बुद्धि का फल है। यह बुद्धि कार्य में गहरी एकाग्रता 4 और अभ्यास से उत्पन्न होती है। अवस्था के परिपाक से होने वाली बुद्धि पारिणामिकी है। (इन सब ca को विस्तार से जानने हेतु नन्दीसूत्र देखें) औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों के धारक महापुरुषों के कई आख्यान आगमों की व्याख्याओं में विस्तार से दिये गये हैं। इन्होंने अपनी सूझबूझ से अनेक कठिन परिस्थितियों में मार्गदर्शक का काम किया है। ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों में राजा, मंत्री, न्यायाधीश, & संत-महात्मा आदि का उल्लेख हमें इन प्राचीन ग्रन्थों में मिलते हैं। यहां वैनयिकी की व्याख्या के प्रसंग में एक प्रश्न उपस्थित हुआ है कि वैनयिकी बुद्धि वाला ca त्रिवर्ग के सूत्र और अर्थ का सार ग्रहण करता है। इससे इसके अश्रुतनिश्रित होने का विरोध स्पष्ट है, . है क्योंकि श्रुतनिश्रित हुए बिना सूत्रार्थ-सार का ग्रहण कैसे सम्भव है? किन्तु नन्दी सूत्र में इसे , अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के अन्तर्गत माना गया है। इस विरोध का परिहार क्या है? इस प्रश्न के उत्तर 4 में हरिभद्रसूरि के कथन का तात्पर्य है-अश्रुतनिश्रित होना प्रायिक (कभी-कभी घटित होने वाला) है, c& उसके स्वल्पश्रुतनिश्रित होने में कोई दोष नहीं है। मात्र बुद्धि-साम्य के आधार पर इसे अन्य बुद्धियों- जो अश्रुत-निश्रित हैं- के साथ उल्लिखित कर दिया गया है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र श्रुतनिश्रितमतिज्ञानस्वरूपप्रदर्शनायाह (नियुक्तिः) उग्गह ईहाऽवाओ य धारणा एव हुँति चत्तारि। आभिणिबोहियनाणस्स भेयवत्थूसमासेणंIR // [संस्कृतच्छाया-अवग्रहः ईहाऽपायश्च धारणैव भवन्ति चत्वारि आभिनिबोधिकज्ञानस्य भेदवस्तूनि समासेन.] (वृत्ति-हिन्दी-) उक्त दोनों भेदों में श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के स्वरूप को बताने के लिए " नियुक्तिकार कह रहे हैं- . -88888888888888888888888