________________ Sacace caceae श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 902099 90 900ज्ञान के स्वरूप का कथन किया जा रहा है। वह आभिनिबोधिक ज्ञान दो प्रकार का हैंc& श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित / जो श्रुतज्ञान से पहले उपकृत (परिकर्मित, संस्कारित) होकर " & अब पुनः उस (श्रुत ज्ञान) की अपेक्षा नहीं रखते हुए अनुप्रवृत्त होता है, वह अवग्रह आदि , स्वरूप वाला 'श्रुतनिश्रित आभिनिबोधिक ज्ञान' होता है। जो पूर्व में श्रुत से संस्कारित नहीं / हुआ है, किन्तु क्षयोपशम की अत्यन्त पटुता के कारण औत्पत्तिकी (वैनयिकी, कर्मिकी व ce पारिणामिकी बुद्धि) आदि रूप से जो (बुद्धिचतुष्टयात्मक) ज्ञान उत्पन्न होता है, वह 'अश्रुतनिश्रित' ce (आभिनिबोधिक) ज्ञान है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___ आह- "तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला" [त्रिवर्गसूत्रार्यगृहीतपेयाला] इति वचनात् . तत्रापि किञ्चित् श्रुतोपकारादेव जायते, तत्कथमश्रुतनिश्रितमिति। उच्यते, अवग्रहादीनां c. श्रुतनिश्रिताभिधानाद् औत्पत्तिक्यादिचतुष्ट ये ऽपि च अवग्र हादिसद्भावात् ce यथायोगमश्रुतनिश्रितत्वमवसेयम्, न तु सर्वमेवेति। ___ अयमत्र भावार्थः-श्रुतकृतोपकारनिरपेक्ष यदौत्पत्तिक्यादि तदश्रुतनिश्रितम्, प्रातिभमिति , c. हृदयम्, वैनयिकीं विहायेत्यर्थः।बुद्धिसाम्याच्च तस्या अपि निर्युक्तौ उपन्यासोऽविरुद्ध इत्यलं " प्रसङ्गेन। (वृत्ति-हिन्दी-) यहां शंकाकार ने प्रश्न किया- 'त्रिवर्ग के सूत्र व अर्थ का सार " व (पेयाल) ग्रहण करने वाली' (वैनयिकी बुद्धि होती है) -इस (नन्दीसूत्र-3/38) वचन से 1 & उनमें भी कुछ न कुछ श्रुतं-संस्कार रहता ही है (यह सूचित होता है), तब फिर उसे " & (बुद्धिचुष्टय को) 'अश्रुतनिश्रित' कैसे कहा? उत्तर दे रहे हैं- अवग्रह आदि को श्रुतनिश्रित , कहा गया है और औत्पतिकी आदि बुद्धियों में भी अवग्रह आदि का सद्भाव रहता है, . 68 इसलिए 'समस्त बुद्धियां अश्रुतनिश्रित ही हैं' -ऐसा नहीं मान लेना चाहिए, और इनकी & अश्रुतनिश्रितता को यथोचित रूप में (अर्थात् स्वल्पश्रुतनिश्रित, या प्रायिक अर्थात् कभी-कभी , c& अश्रुतनिश्रित होने वाली -इस रूप में) ही ग्रहण करना चाहिए। ____इसका तात्पर्य यह है- पूर्व में श्रुत-परिकर्मित, श्रुत-संस्कारित, किन्तु वर्तमान में है & उससे निरपेक्ष जो औत्पत्तिकी आदि बुद्धियां हैं, वे अश्रुत-निश्रित हैं, अर्थात् सभी प्रातिभ ज्ञान " अश्रुतनिश्रित है, किन्तु वैनयिकी को छोड़ कर (क्योंकि वह तो श्रुतनिश्रित ही है)। (मात्र), - 40 8888888880888080888