________________ RRRRRRRom 99222000 33333333332 नियुक्ति-गाथा-1 (भूमिका) हैं तो श्रुतज्ञान के अङ्ग व अनङ्ग (अंगप्रविष्ट व अंगबाह्य आदि) भेद हैं। अथवा, मतिज्ञान मात्र 4 अपने स्वरूप को (ही) प्रकाशित करता है, किन्तु श्रुत स्वयं को और अन्यान्य (पदार्थ) को " & भी प्रकाशित करता है। इतना संकेत मात्र किया जा रहा है। अधिक कुछ कहने की कोई , जरूरत नहीं है। 4 यहां किसी ने शंका प्रस्तुत की -इन (पांच) ज्ञानों का इस प्रकार जो क्रम रख गया : & है, उसका क्या प्रयोजन (उद्देश्य) है? उत्तर दे रहे हैं- एक तो परोक्षता की दृष्टि से (मति व . श्रुत -ये) दोनों समान हैं और दूसरे, इन (दोनों) के होने पर ही शेष ज्ञान संभव हो पाते हैं, .. है इसलिए मति व श्रुत को सब से पहले रखा गया है। (प्रश्न-) श्रुत से पूर्व मति को क्यों रखा आ गया? बता रहे है- मति-पूर्वक ही श्रुत होता है, इस सम्बन्ध में तत्त्वार्थसूत्र का 'श्रुतं / a मतिपूर्वम् व्यनेकद्वादशभेदम्' (अध्ययन-1, सूत्र-20) यह वचन (प्रमाण, समर्थक) है। " a अवधि आदि शेष तीन ज्ञानों को बाद में इसलिए रखा गया है, क्योंकि वे प्रायः मति-श्रुत पूर्वक होते हैं, और तीनों ज्ञान (अवधि, मनःपर्यय व केवल) प्रत्यक्ष की दृष्टि से साधर्म्य वाले , हैं। इनमें स्थिति-काल व विपर्यय -इन दोनों दृष्टियों से साम्य को देखते हुए मति व श्रुत के . बाद अवधि को रखा गया है। अवधि के बाद मनःपर्याय ज्ञान को इसलिए रखा गया है , क्योंकि दोनों के स्वामी छद्मस्थ ही होते हैं -इस दृष्टि से उनमें साधर्म्य है। उस (मनःपर्याय , a ज्ञान) के बाद केवल ज्ञान को इसलिए रखा गया है क्योंकि दोनों में यह साधर्म्य है कि दोनों , a के स्वामी 'भावमुनि' होते हैं। इसके अतिरिक्त, सब के अन्त में रखने का यह भी कारण है , a कि केवलज्ञान सभी ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ |1|| (हरिभद्रीय वृत्तिः) a. साम्प्रतं यथोद्देशं निर्देशः' इति न्यायाद्ज्ञानपञ्चकादावुद्दिष्टस्य आभिनिबोधकज्ञानस्य " * स्वरूपमभिधीयते- तच्चाभिनिबोधिकज्ञानं द्विधा, श्रुतनिश्रितमश्रुतनिश्रितं च। यत्पूर्वमेव 9 * कृतश्रुतोपकारं इदानीं पुनस्तदनपेक्षमेवानुप्रवर्तते तद् अवग्रहादिलक्षणं श्रुतनिश्रितमिति।यत्पुनः / * पूर्व तदपरिकर्मितमतेः क्षयोपशम-पटीयस्त्वात् औत्पत्तिक्यादिलक्षणम् उपजायते, . तदश्रुतनिश्रितमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) अब, 'उद्देश (नाम-निर्देश) के बाद निर्देश (स्वरूप-निरूपण) करना , चाहिए -इस नियम के अनुरूप, ज्ञान-पंचक आदि में उद्दिष्ट (नाम से कथित) आभिनिबोधिक &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& (r)(r)(r)(r)(r)(r)R@@@@@@@ 39