________________ ARRRRRRA 90000 9000 333333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) * अथवा, मनःपर्यव का अर्थ है- मन के पर्याय / पर्याय कहें, या भेद कहें या धर्म कहें ca (एक ही बात हैं, क्योंकि) ये सब बाह्य वस्तु के विविध आलोचन (स्वरूप) हैं, अतः एक ही " & अर्थ को व्यक्त करते हैं। इनके विषय का जो ज्ञान है, वह मनःपर्याय ज्ञान है। अथवा, मन के , पर्यायों का या उनसे सम्बद्ध जो ज्ञान है, वह मनःपर्याय ज्ञान है। वह ज्ञान अढ़ाई द्वीप-समुद्र CM के भीतर (अन्तर्गत) रहने वाले संज्ञी प्राणियों के मनोगत द्रव्य का आलम्बन लेकर होता है। 2 गाथा में प्रयुक्त 'तथा' शब्द यह सूचित करता है कि मनःपर्याय ज्ञान की अवधिज्ञान से " * सरूपता (समानता) है। (प्रश्न-) यह समानता कैसे है? (उत्तर है-) दोनों के स्वामी छद्मस्थ " a (असर्वज्ञ) होते हैं- यह दोनों का (एक) साधर्म्य है। दोनों ही मात्र पुद्गल का ही अवलम्बन " लेते हैं, यह भी (एक) साम्य है। दोनों ही क्षायोपशमिक भाव हैं, और दोनों ही प्रत्यक्ष (कोटि , में परिगणित) हैं, ये भी समानताएं हैं। 4 (हरिभद्रीय वृत्तिः) केवलमसहायं मत्यादिज्ञाननिरपेक्षम्, शुद्धं वा केवलम्, तदावरणकर्ममल- - कलङ्काङ्करहितम्, सकलं वा केवलम्, तत्प्रथमतयैव अशेषतदावरणाभावतः संपूर्णोत्पत्तेः। असाधारणं वा केवलम्, अनन्यसदृशमितिहृदयम्, ज्ञेयानन्तत्वाद् अनन्तं वा केवलम्, , यथावस्थिताशेषभूतभवद्भाविभाव-स्वभावावभासीति भावना, केवलं च तज्ज्ञानं चेति समासः, , चशब्दस्तूक्तसमुच्चयार्थः, केवलज्ञानं च पञ्चमकमिति, अथवाऽनन्तराभिहितज्ञानसारूप्यप्रदर्शक एव, अप्रमत्तभावयतिस्वामि-साधात् विपर्ययाभावयुक्तत्वाच्चेति गाथासमासार्थः // a (वृत्ति-हिन्दी-) 'केवल' का अर्थ है- असहाय, अर्थात् बिना किसी की सहायता के, 1 मति आदि ज्ञान की अपेक्षा न रखते हुए होने वाला। अथवा 'केवल' से तात्पर्य है- शुद्ध 1 a (अमिश्रित) ज्ञान, क्योंकि वह अपने आवरण (ज्ञानावरण) कर्म के मल या कलंक रूपी धब्बे " a से रहित होता है। अथवा, केवल का अर्थ है- सकल (अर्थात् पूर्ण), क्योंकि वह समस्त " आवरणों के (पूर्णतया) अभाव होने के कारण, सम्पूर्ण (निरावरण) होकर प्रकट होता है। या 0 a केवल का अर्थ है- असाधारण (अकेला, अनुपम)। अर्थात् जिसके समान कोई और न हो यह तात्पर्य है। अथवा केवल का अर्थ है- अनन्त, क्योंकि उसके ज्ञेय अनन्त (पदार्थ एवं . उसके पर्याय) होते हैं। इसकी पूर्णता का अर्थ है- यथावस्थित (जो वस्तु जिस रूप में स्थित . है, उसे उसी रूप में) समस्त अतीत, भावी व वर्तमान पदार्थों के स्वभाव को प्रकाशित (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)cR00000000 37