________________ 33333333333335888 -cace ca ca ca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0 0 0 0 0 0 अवधिज्ञान से होने वाला जो विषय-ज्ञान होता है), वह 'अवधि' है। अवधि जो ज्ञान -इस | ca अर्थ में दोनों पदों का समास होकर 'अवधि ज्ञान' यह शब्द निष्पन्न होता है। (गाथा में पठित) 7 & 'च' शब्द अपने अनन्तर-पठित (समीपवर्ती) दोनों ज्ञानों (मति व श्रुत) के साथ अवधि ज्ञान , ज्ञान का साधर्म्य (सादृश्य) प्रदर्शित करता है, क्योंकि उन (तीनों) में स्थिति (और विपर्यय, .. स्वामी व लाभ) आदि की दृष्टि से साधर्म्य है। (प्रश्न-) कैसे (साधर्म्य) है? (उत्तर दे रहे हैं)- 1 मति व श्रुत ज्ञान का- प्रवाह की दृष्टि से, या एक प्राणी में अविच्युत रूप से आधार होने की " & अपेक्षा से- जितना स्थितिकाल होता है, उतना ही, अवधि ज्ञान का भी होता है, इसलिए इनमें स्थिति-सम्बन्धी साधर्म्य है। और जिस प्रकार, मति व श्रुत ज्ञान विपर्यय ज्ञान (अज्ञान) - विभंग ज्ञान होता है, इस तरह विपर्यय-सम्बन्धी साधर्म्य भी है। और, जो मति व श्रुत का , स्वामी होता है, वही अवधिज्ञान का भी स्वामी होता है, इस तरह स्वामी-सम्बन्धी साधर्म्य , भी है। और, विभंगज्ञानी देव आदि को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होने पर, युगपत् (एक साथ) तीनों ज्ञान सम्भव होते हैं, अतः लाभ-सम्बन्धी साधर्म्य भी है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तथा मनःपर्यवज्ञानम् / अयं भावार्थः- परिः सर्वतो भावे, अवनं अवः, अवनं गमनं वेदनमिति पर्यायाः, परि अवः पर्यवः पर्यवनं वा पर्यव इति, मनसि मनसो वा प्रर्यवो मनःपर्यवः, सर्वतस्तत्परिच्छेद इत्यर्थः, स एव ज्ञानं मनःपर्यवज्ञानम्। अथवा मनसः पर्याया मनःपर्यायाः, पर्याया भेदा धर्मा बाह्य-वस्त्वालोचनप्रकारा & इत्यनन्तरम्, तेषु ज्ञानं मनःपर्यायज्ञानम्, तेषां वा सम्बन्धि ज्ञानं मनःपर्यायज्ञानम् / इदं , ca चार्धतृतीयद्वीपसमुद्रान्तर्वत्तिसंज्ञि-मनोगतद्रव्यालम्बनमेवेति, तथाशब्दोऽवधिज्ञानसारूप्य- . & प्रदर्शनार्थः। कथम्?, छद्मस्थस्वामिसाधर्म्यात्, तथा पुद्गलमात्रालम्बनत्वसाम्यात्, तथा . क्षायोपशमिकभावसाम्यात्, तथा प्रत्यक्षत्वसाम्याच्चेति। (वृत्ति-हिन्दी-) इसी तरह, मनःपर्यय ज्ञान भी है। तात्पर्य यह है- 'परि' अर्थात् सर्व . & प्रकार से, 'अव' अर्थात् अवन (ज्ञान)। अवन, गमन, वेदन -ये पर्याय हैं, अतः ‘परि' उपसर्गपूर्वक अर्थात् सर्वतोभावेन (सभी तरह से), अव या अवन (ज्ञान) होना- 'पर्यव' है। , वह (पर्यव) मनोविषय हो, या मन का हो तो उसे मनःपर्यव कहते हैं, जिसका अर्थ है- सभी प्रकारों से उसका (मनोविज्ञान या मन का) बोध / मनःपर्यव जो ज्ञान -वह मनःपर्यव ज्ञान है। 333333333333333333333333333333333333333333333 - 36 89088888@m@@ @ @ @ @ @ @