________________ -RRRRRRR 0900999900 33288323823333333333333 9223333333333333333333 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) तीन बार (आयु पूर्ण कर) वहां से (पुनः) मनुष्य भव धारण करने वाले के, (मतिज्ञान की ca अविच्युति के रूप में,) साधिक छाछठ हजार सागरोपम काल की स्थिति होती है। नाना 2 जीवों की अपेक्षा से तो सभी कालों में मति ज्ञान की स्थिति है। जिस प्रकार मतिज्ञान में हेतु उसका (उसके आवरण का) क्षयोपशम होता है, उसी a प्रकार श्रुतज्ञान में भी। जिस प्रकार मतिज्ञान आदेश-अनुरूप (अर्थात् ओघदृष्टि से, सामान्यतया) सर्व द्रव्य (एवं क्षेत्र व काल) आदि को विषय करता है (अपना ज्ञेय बनाता है), उसी प्रकार , : श्रुतज्ञान भी। (गाथा में पठित) 'एव' शब्द 'अवधारण' अर्थ को अर्थात् (द्रव्येन्द्रिय व मन से a होने वाले) दोनों ज्ञानों की परोक्षता का अवधारण करता है- अर्थात् यह सूचित करता है कि a आभिनिबोधिक ज्ञान व श्रुत ज्ञान (-ये दोनों) परोक्ष ही हैं, यह तात्पर्य है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तथा अवधीयतेऽनेन इत्यवधिः, अवधीयते इति अधोऽधो विस्तृतं परिच्छिद्यते, मर्यादया वेति, अवधिज्ञानावरणक्षयोपशम एव, तदुपयोगहेतुत्वादित्यर्थः। अवधीयतेऽस्मादिति वेति a अवधिः, तदावरणीयक्षयोपशम एव, अवधीयतेऽस्मिन्निति वेत्यवधिः, भावार्थः पूर्ववदेव ।अवधानं " a वाऽवधिः, विषयपरिच्छेदनमित्यर्थः। अवधिश्चासौ ज्ञानं च अवधिज्ञानम् / चशब्दः // a खल्वनन्तरोक्तज्ञानद्वयसाधर्म्यप्रदर्शनार्थः, स्थित्यादिसाधात् / कथम्?, यावान् 2 a मतिश्रुतस्थितिकालः प्रवाहापेक्षया अप्रतिपतितैकसत्त्वाधारापेक्षया च, तावानेवावधेरपि, अतः / स्थितिसाधर्म्यात्, यथा मतिश्रुते विपर्ययज्ञाने भवतः, एवमिदमपि मिथ्यादृष्टर्विभङ्गज्ञानं भवतीति , विपर्ययसाधात्, य एव च मतिश्रुतयोः स्वामी स एव चावधेरपि भवतीति स्वामिसाधर्म्यात्, / विभङ्गज्ञानिनः त्रिदशादेः सम्यग्दर्शनावाप्तौ युगपज्ज्ञानत्रयं संभवतीति लाभसाधाच्च। (वृत्ति-हिन्दी-) और, जिससे (जिसके द्वारा) 'अवधान' किया जाय, वह 'अवधि' / (ज्ञान) है। अवधान का अर्थ है- (अव-यानी) नीचे से नीचे तक विस्तार में, या मर्यादा (रूपी 1 . द्रव्यों की सीमा) के साथ, (धान, यानी) ज्ञान की प्राप्ति।अतः अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम " (रूप-आत्मस्वरूप) ही 'अवधि' सिद्ध होता है, क्योंकि वही (क्षयोपशम) अवधिज्ञान-सम्बन्धी . a उपयोग (चेतना-व्यापार) में हेतु होता है। अथवा, जिसके निमित्त से अवधान (सम्भव) हो, या जिसके सद्भाव में (या होने पर) अवधान हो, वह 'अवधि' है, इन दोनों अर्थों में भी है / पूर्ववत् ज्ञानावरण-क्षयोपशम ही 'अवधि' सिद्ध होता है। अथवा जो अवधान होता है, (अर्थात् / (r)(r)(r)(r)(r)(r)ReecR@@@cRO900