________________ 333333333333333333333333322233333333333333 cace caca ca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 09090202000 E S (वृत्ति-हिन्दी-) और, जो सुना जाय, वह (यानी) 'शब्द' ही (द्रव्य) 'श्रुत' है, क्योंकि c& वह (शब्द) भावश्रुत का कारण होता है। अथवा, जिससे सुना जाय, वह, अर्थात् श्रुतज्ञानावरण & कर्म का क्षयोपशम 'श्रुत' है। अथवा, जिसके कारण से सुना जाय, वह, यानी वही क्षयोपशम & ही श्रुत है। अथवा जिसके सद्भाव में (या जिसके होने पर) सुना जाय, वह यानी उक्त ca क्षयोपशम ही श्रुत है। अथवा जो सुनता है, वह अर्थात् आत्मा ही श्रुत है। अथवा जो सुनता है, . वह, अर्थात् आत्मा ही श्रुत है, क्योंकि वह श्रुत के उपयोग से अनन्य है। श्रुत जो ज्ञान -इस ce अर्थ में दो पदों का समास होकर श्रुतज्ञान -यह पद निष्पन्न होता है। गाथा में 'च' पद प्रयुक्त " न है जिससे आभिनिबोधिक ज्ञान व श्रुतज्ञान -इन दोनों की तुल्यकक्षता (समानस्तरता) सूचित होती है, क्योंकि स्वामी आदि दृष्टियों से दोनों की समानता (शास्त्रप्रतिपादित ही) है। " (प्रश्न) (यह समानता) कैसे है? (उत्तर-) जो ही मतिज्ञान का स्वामी है, वही श्रुतज्ञान का , भी स्वामी है, क्योंकि 'जहां-जहां मतिज्ञान है, वहां-वहां श्रुतज्ञान है' यह (शास्त्रीय) वचन 8 उपलब्ध होता है। और, जितना मतिज्ञान का स्थितिकाल है, उतना ही श्रुतज्ञान का भी है। c. इसके अतिरिक्त, प्रवाह की दृष्टि से भी अतीत, भावी, वर्तमान -इन तीनों कालों में इनकी ca स्थिति है। एक जीव की भी बात करें तो दोनों की , अप्रतिपाती (अविच्युति) रूप में साधिक & छाछठ सागरोपम काल तक की स्थिति मानी गई है। O (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तं च भाष्यकारेण दोवारे विजयाइसु गयस्स तिण्णच्चुए अहव ताई। अइरे गं णरभविअं णाणाजीवाण सव्वद्धं // यथा च मतिज्ञानं क्षयोपशमहेतुकं, तथा श्रुतज्ञानमपि, यथा च मतिज्ञानमादेशतः " & सर्वद्रव्यादिविषयम्, एवं श्रुतज्ञानमपि, यथा च मतिज्ञानं परोक्षम्, एवं श्रुतज्ञानमपि इति। " a एवकारस्त्ववधारणार्थः, परोक्षत्वमनयोरेवावधारयति, आभिनिबोधिकश्रुतज्ञाने एव परोक्षे इति - ca भावार्थः। (वृत्ति-हिन्दी-) भाष्यकार ने भी (विशेषावश्यक भाष्य की गाथा सं. 436 में) कहा है (मनुष्य भव से, 33-33 सागरोपम आयु वाले) विजय आदि (वैमानिक देवों) में दो " / बार (आयु पूर्ण कर), या (22-22 हजार सागरोपम आयु वाले) अच्युत (आदि देवलोकों में ! - 34 (r)(r)(r)(r)(r)(r)R@necR@9080@cR@@