________________ Rececent 0000000 333333333333022322232323333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) - (वृत्ति-हिन्दी-) अर्थाभिमुखी नियत ज्ञान को 'आभिनिबोध' कहते हैं। अभिनिबोध ca ही 'आभिनिबोधिक' है। चूंकि अभिनिबोध' शब्द 'विनयादि' गण में पठित है, अतः 'विनयादिभ्यः / a ठक्' -इस (पाणिनीय-5/4/34) सूत्र से स्वार्थ में 'अभिनिबोध' शब्द से ठक् प्रत्यय होने / पर उसी प्रकार 'आभिनिबोधिक' शब्द निष्पन्न हुआ है जिस प्रकार 'विनय ही' अर्थ में वैनयिक' पद निष्पन्न होता है। अथवा आभिनिबोधिक वह है जो अभिनिबोध में होता है, या , उससे निष्पन्न होता है, या तन्मय होता है, या जिसका प्रयोजन 'अभिनिबोध' ही होता है, या " जो अभिनिबुद्ध (अर्थात् अभिनिबोध का विषय) होता है। इस प्रकार, अवग्रह आदि मतिज्ञान , & ही 'आभिनिबोधिक' है, क्योंकि वह स्वसंविदित होता है। यह कथन अभिनिबुद्ध व आभिनिबोध , में औपचारिक भेद मानकर किया गया है -यह तात्पर्य है। अथवा आभिनिबोधिक वह है जिसके द्वारा अभिनिबोध प्राप्त होता है, अर्थात् जो " : अवधिज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम है, वह आभिनिबोधिक है। अथवा आभिनिबोधिक वह है : जिसके अनन्तर अभिनिबोध हो (या जिससे उद्भूत हो), इस दृष्टि से भी उक्तक्षयोपशम ही , आभिनिबोधिक सिद्ध होता है। अथवा आभिनिबोधिक वह है जिसके सद्भाव में (या होने पर) अभिनिबोध हो, इस (निर्वचन) से भी उक्त क्षयोपशम 'आभिनिबोधिक' कहलाता है। 4 अथवा आभिनिबोधिक वह हैं जो अभिनिबोध का विषय हो, इस (निर्वचन) से आत्मा ही है a 'अभिनिबोध' है, क्योंकि अभिनिबोध-उपयोग रूप परिणाम और आत्मा -ये दोनों अनन्य हैं - a (एक ही हैं)।आभिनिबोधिक जो ज्ञान -इस अर्थ में दोनों पदों का समास होकर 'आभिनिबोधिक a ज्ञान' यह शब्द (पद) निष्पन्न होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) . तथा श्रूयत इति श्रुतं शब्द एव, भावश्रुतकारणत्वादिति भावार्थः। अथवा श्रूयतेऽनेनेति * श्रुतम्, तदावरणक्षयोपशम इत्यर्थः, श्रूयतेऽस्मादिति वा श्रुतम्, तदावरणक्षयोपशम एव, 4 श्रूयतेऽस्मिन्निति वा क्षयोपशम इति श्रुतम्, शृणोतीति वाSSत्मैव तदुपयोगानन्यत्वात्, श्रुतं च // तज्ज्ञानं चेति समासः।चशब्दस्त्वनयोरेव तुल्यकक्षतोद्भावनार्यः, स्वाम्यादिसाम्यात्।कथम्?, से य एव मतिज्ञानस्य स्वामी स एव श्रुतज्ञानस्य “जत्थ मइनाणं तत्थ सुयणाणं" इति वचनात्। तथा यावान्मतिज्ञानस्य स्थितिकालस्तावानेवेतरस्य, प्रवाहापेक्षया अतीतानागतवर्तमानः सर्व / एव, अप्रतिपतितैकजीवापेक्षया च षट्षष्टिसागरोपमाण्यधिकानीति। 8088@ @ce@ @ROBce@ @ @ @ @ 33