________________ -RRRRRRR नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) හ හ හ හ හ හ හ -..- 333333333333333333333333333333333333333333333 (शंका-) नाममङ्गल, स्थापनामङ्गल और द्रव्य मङ्गल -इन्हें 'मङ्गल' कहा गया है। ca किन्तु इन (तीनों) में विवक्षित मङ्गल रूप भाव तो रहता नहीं, और द्रव्यत्व भी इनमें समान " रूप से है, इसलिए (तीनों ही को भावशून्य व द्रव्यरूप होने के कारण) इनमें विशेषता क्या है रही? इसका उत्तर दे रहे हैं- जैसे स्थापना इन्द्र में तो इन्द्र का आकार (कहीं-कहीं) लक्षित होता है, (स्थापना के) कर्ता द्वारा वह सद्भूत इन्द्र रूप में अभिप्रेत (अभीष्ट भी) होता है। द्रष्टा को भी इन्द्र के आकार को देखकर इन्द्र की (यह इन्द्र है- इस प्रकार) प्रतीति होती है। & प्रणति की बुद्धि वाले (किसी अभीष्ट) फल की कामना से उसकी स्तुति भी करने लग जाते हैं व और (उनमें) कुछ को देवता-अनुग्रह से फल प्राप्त भी होता है, किन्तु ऐसा कुछ 'नाम इन्द्र' " व 'द्रव्य इन्द्र' में घटित नहीं होता। इस दृष्टि से 'स्थापना' की नाम व द्रव्य से भिन्नता है। इसी तरह, द्रव्य इन्द्र (भविष्य में) भाव इन्द्र का कारण होता है, और 'उपयोग' की दृष्टि से भी इन्द्र-सम्बन्धी उपयोग को या तो वह प्राप्त करने वाला होता है या कर चुका होता है, किन्तु : यह स्थिति नाम इन्द्र व स्थापना इन्द्र में नहीं होती (क्योंकि इन दोनों में इन्द्र होने की स्थिति न पहले कभी रही होती है और न ही आगे हो सकती है) -इस द्रष्टि से 'द्रव्य' (इन्द्र) की ca नाम (इन्द्र) व स्थापना (इन्द्र) से भिन्नता है। & (हरिभद्रीय वृत्तिः) भावमङ्गलमेवैकं युक्तं, स्वकार्यप्रसाधकत्वात्, न नामादयः, तत्कार्याप्रसाधकत्वात्, पापवद् इति चेत्, न, नामादीनामपि भावविशेषत्वात्, यस्मादविशिष्टमिन्द्रादि वस्तु ल उच्चरितमात्रमेव नामादिभेदचतुष्टयं प्रतिपद्यते, भेदाश्च पर्याया एवेति।अथवा नामस्थापनाद्रव्याणि " a भावमङ्गलस्यैवाङ्गानि, तत्परिणामकारणत्वात्।तथा च मङ्गलाघभिधानं सिद्धाद्यभिधानं चोपश्रुत्य , 4 अर्हत्प्रतिमास्थापनां च दृष्ट्वा भूतयतिभावं भव्ययतिशरीरं चोपलभ्य प्रायः सम्यग्दर्शनादिभावमङ्गलपरिणामो जायते, इत्यलं प्रसङ्गेन। (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) (तब तो) एकमात्र भावमङ्गल का ही कथन युक्तियुक्त है, क्योंकि वही (इन्द्रत्व-सम्बन्धी) स्वकार्य का साधक होता है, अतः नाम आदि का कथन युक्तियुक्त नहीं, क्योंकि वे (इन्द्रत्व-सम्बन्धी) स्व-कार्य के साधक नहीं होते? (उत्तर-) R आपका ऐसा कहना युक्तियुक्त नहीं। नाम आदि भी भाव-विशेष रूप ही हैं, क्योंकि विशेषरहित, अर्थात् सामान्य रूप में, इन्द्र आदि वस्तु (के नाम) का उच्चारण करते ही (बुद्धि में) नाम 6-7777777777777777777777777777777777777777777 (r)(r)ce@neck@@cROBR880868800 25 -