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________________ | Ranance श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0999900 222222222222222233333322232333333333333332223 पदार्थ) दहन आदि अर्थक्रिया के साधक होते नहीं भी देखे जाते हैं, क्योंकि भस्म से ca आच्छादित अग्नि में (या चन्द्रकान्त मणि के सान्निध्य में भी) दाह आदि अर्थक्रिया का अभाव , होने से उसका व्यभिचार देखा जाता है [उसी प्रकार, अग्नि ज्ञान रूप उपयोग होने पर भी यदि बालक दाहक्रिया नहीं करता तो कोई दोष नहीं है] / अतः अधिक विस्तार से कहना यहां अपेक्षित नहीं रह गया है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) प्रकृतमुच्यते-नोआगमतो भावमङ्गलम् आगमवर्ज ज्ञानचतुष्टयमिति, सर्वनिषेधवचनत्वान्नोशब्दस्य।अथवा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रोपयोगपरिणामो यः स नागम एव केवलः न चानागमः, इत्यतोऽपि मिश्रवचनत्वान्नोशब्दस्य नोआगमत इत्याख्यायते। अथवा " a अर्हन्बमस्काराचुपयोगः खल्वागमैकदेशत्वात् नोआगमतो भावमङ्गलमिति॥ ननु नामस्थापनाद्रव्येषु मङ्गलाभिधानं विवक्षितभावशून्यत्वाद्र्व्यत्वं च समानं वर्तते; ततश्चक एषां विशेष इति।अत्रोच्यते, यथा हि स्थापनेन्द्रे खल्विन्द्राकारों लक्ष्यते, तथा कर्तुश्च / सद्भूतेन्द्राभिप्रायो भवति, तथा द्रष्टुश्च तदाकारदर्शनादिन्द्रप्रत्ययः, तथा प्रणतिकृतधियश्च फलार्थिनः a स्तोतुं प्रवर्तन्ते, फलं च प्राप्नुवन्ति केचिद्देवतानुग्रहात्, न तथा नामद्रव्येन्द्रयोरिति, " a तस्मात्स्थापनायास्तावदित्यं भेद इति / यथा च द्रव्येन्द्रो भावेन्द्रस्य कारणतां प्रतिपद्यते, तथोपयोगापेक्षायामपि तदुपयोगतामासादयिष्यति अवाप्तवांश्च, न तथा नामस्थापनेन्द्रावित्ययं विशेषः। (वृत्ति-हिन्दी-) अब प्राकृत विषय का कथन (प्रारम्भ) कर रहे हैं- आगम को छोड़कर, चारों ज्ञान ‘नोआममतः भावमङ्गल' हैं। यहां 'नो' शब्द सर्वनिषेध का वाचक है / किन्तु प्रसज्ज्यप्रतिषेध का वाचक न होकर पर्युदास प्रतिषेध का वाचक है, अतः, जैसे 'अब्राह्मण को a बुलाओ' का अर्थ नहीं होता कि ब्राह्मण को मत बुलाओ, अपितु यह अर्थ होता है कि ब्राह्मण को a छोड़कर ब्राह्मण जैसे आमंत्रण योग्य को बुलाओ। इसी तरह 'नोआगम' का अर्थ यहां होगा कि " & आगम तो नहीं, किन्तु आगम जैसा ही।] अथवा सम्यग्दर्शन चारित्र रूप उपयोग परिणाम रूप जो आगम होता है, वही केवल नहीं हो, किन्तु अनागम भी नहीं हो -इस अर्थ का वाचक होते हुए (न आगम, न अनागम, इस प्रकार) 'नो' शब्द मिश्र पदार्थ का वाचक है -इसलिए ch 'नो-आगम' कहा गया है। अथवा अर्हन्तों को किये जाने वाले नमस्कार आदि उपयोग - आगम-एकदेश हैं, इस दृष्टि से वह 'नो-आगम भावमङ्गल' कहा गया है। 248988088@ReceneRec@@@ . 333333333333333333333333333338888888888888 .
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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