________________ Reeeeece 2999999 222828822222222222222333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) (हरिभंद्रीय वृत्तिः) कथमिह भावमङ्गलोपयोगमात्रात् तन्मयताऽवगम्यत इति, नह्यग्निज्ञानोपयुक्तो 7 & माणवकोऽग्निरेव, दहनपचनप्रकाशनाद्यर्थक्रियाप्रसाधकत्वाभावाद् इति चेत्, न, . अभिप्रायापरिज्ञानात्। संवित् ज्ञानम् अवगमो भाव इत्यनन्तरम्, तत्र ‘अर्थाभिधानप्रत्ययाः / तुल्यनामधेयाः' इति सर्वप्रवादिनामविसंवादस्थानम्, अग्निरिति च यज्ज्ञानं तदव्यतिरिक्तो . ज्ञाता तल्लक्षणो गृह्यते, अन्यथा तज्ज्ञाने सत्यपि नोपलभेत, अतन्मयत्वात्, प्रदीपहस्तान्धवत् / & पुरुषान्तरवद्वा / न चानाकारं तज्ज्ञानम्, पदार्थान्तरवद्विवक्षितपदार्था-परिच्छेदप्रसङ्गात्, " * बन्धाद्यभावश्च, ज्ञानाज्ञानसुखदुःखपरिणामान्यत्वाद्, आकाशवत् / न चानलः सर्व एव . & दहनाद्यर्थक्रियाप्रसाधकः, भस्मच्छन्नादिना व्यभिचारात्, इत्यलं प्रसङ्गेन। (वृत्ति-हिन्दी-) (प्रश्न-) अग्निज्ञान के उपयोग से युक्त बालक (माणवक) अग्नि , ही नहीं हो जाता, क्योंकि वहां (उस बालक में) (अग्नि के गुण) जलाना, पकाना, प्रकाश >> करना आदि अर्थक्रियाओं को सिद्ध करने की क्षमता नहीं होती, उसी प्रकार भावमङ्गलसम्बन्धी उपयोग होने मात्र से भावमङ्गल से उसकी तन्मयता किस प्रकार मानी जा सकती है है? (उत्तर-) ऐसा नहीं कहें। आपने हमारा अभिप्राय नहीं समझा है। संवित्, ज्ञान, अवगम, ca भाव -ये शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं। अर्थ, नाम व प्रतीति -इन्हें समान नामों से पुकारा , जा सकता है- इसमें किसी भी प्रवादी (मतविशेष के समर्थक) को कोई विसंवाद (आपत्ति) व नहीं है। अग्नि है' -यह जो ज्ञान है, वह और उसका ज्ञाता -ये दोनों परस्पर पृथक् नहीं है, . a अन्यथा (पार्थक्य मानने पर अन्य (पृथक्) पदार्थ की तरह ही उसके ज्ञान होने पर अग्नि की . . उपलब्धि नहीं हो पाएगी, क्योंकि हाथ में दीपक लिए हुए अन्धे (को रूपादिज्ञान जहीं होता, , उस) की तरह, या अन्य (ज्ञाता से भिन्न) पुरुष की तरह ही वहां ज्ञान व ज्ञाता की तन्मयता नहीं हो पाएगी। वहां (उक्त उदाहरणों- अन्धे पुरुष एवं अ-ज्ञाता आदि में) वह ज्ञान उस . a (ज्ञेय) से तदाकार उसी तरह नहीं हो पाता जैसे कि अन्य (अज्ञेय) पदार्थ / इस प्रकार " विवक्षित पदार्थ के ज्ञान न होने का दोष प्रसक्त होगा। और भी, यदि ज्ञान, अज्ञान, सुख, 7 व दुःख -इन परिणामों से ज्ञाता को भिन्न मानेगें तो, जैसे आकाश का बन्ध (व मोक्ष) आदि " नहीं होते, उसी तरह ज्ञाता (आत्मा) के बन्ध आदि का सद्भाव ही लुप्त हो जाएगा। (और जो . "आपने दाह आदि अर्थक्रिया का साधक न होने से अग्नि-ज्ञानोपयुक्त बालक को 'अग्नि' कहना असंगत बताया था, वह भी दोषयुक्त है, क्योंकि) सभी अग्नि (नाम से कहे जाने वाले - Recemc@@@@R@@neck@@ 23