________________ -Reace 99999000000 22222222222222222222222 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) उसकी अमङ्गलता है तो मङ्गलाचरण की भी अन्य मङ्गल के अभाव में अमङ्गलता है, . * इसलिए (मङ्गलाचरण का जो फल है, वह) 'मङ्गल' ही नहीं हो पाएगा। (पूर्वोक्त शंका का) उत्तर दे रहे हैं- शास्त्र व मङ्गल में भेद मानने पर आपने जो " दोष बताए, वे निरस्त हो जाते हैं क्योंकि हम भेद मानते ही नहीं हैं। और भेद मान लें, तो भी , & उक्त दोष नहीं है क्योंकि नमक व दीपक आदि की तरह मङ्गलाचरण स्वयं भी मङ्गलरूप, होता है और दूसरों के लिए भी मङ्गल सिद्ध होता है [अर्थात् जैसे नमक स्वयं नमकीन होता है, . वह अन्य पदार्थ को भी नमकीन बनाता है, इसके लिए उसे अन्य नमक की अपेक्षा नहीं होती। इसी , व प्रकार दीपक स्वतः प्रकाशित होता है और वह अन्य पदार्थों को भी प्रकाशित करता है, दीपक को ल देखने के लिए दूसरे दीपक की आवश्यकता नहीं होती, वैसे ही मङ्गलाचरण स्वयं मङ्गलरूप है, उसके ? मङ्गल के लिए अन्य मङ्गल की जरूरत नहीं, इसलिए अनवस्था दोष नहीं होता।] अभेद मानने पर " भी मङ्गलाचरण की निरर्थकता इसलिए नहीं है क्योंकि शिष्यों के बुद्धि (मस्तिष्क) में 'मङ्गलाचरण करना चाहिए'- यह भाव बैठाना जरूरी है, और यह एक प्रकार से शास्त्र की मङ्गलरूपता का ही बोध कराना है। तात्पर्य यह है कि शिष्य 'यह शास्त्र मङ्गल है' इस भाव को किसी न किसी प्रकार समझे -इस दृष्टि से 'यह शास्त्र मङ्गल है' -यह कहा जाता है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह- यद्यपि मङ्गलमिदं शास्त्रमित्येवं न गृह्णाति विनेयस्तथापि तत् स्वतो मङ्गलरूपत्वात् स्वकार्यप्रसाधनायालमेवेति कथं नानर्थक्यम्?, न, अभिप्रायापरिज्ञानात्।इह , मालमपि मङ्गलबुद्धया परिगृह्यमाणं मङ्गलं भवति, साधुवत्।तथाहि-साधुर्मगलभूतोऽपि बसन्मङ्गलबुद्धयैव गृह्यमाणः प्रशस्तचेतोवृत्ते व्यस्य तत्कार्यप्रसाघको भवति, यदा तु न तथा , गृह्यते, तदा कालुष्योपहतचेतसः सत्त्वस्य न भवतीति, एवं शास्त्रमपीति भावार्थः। ___ (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) यह शास्त्र मङ्गल रूप है- इस रूप से यद्यपि शिष्य नहीं है समझता है, फिर भी वह शास्त्र स्वतः मङ्गलरूप होने से मङ्गल-सम्पादन का अपना कार्य तो कर ही सकता है, ऐसी स्थिति में मङ्गलाचरण की निरर्थकता क्यों नहीं है? (अर्थात् उसकी . सार्थकता क्या है?) उत्तर-ऐसी बात नहीं है, आपने हमारे अभिप्राय को ही नहीं समझा है। " a (यद्यपि शास्त्र मङ्गलरूप है, फिर भी) मङ्गल को भी मङ्गल के रूप में ग्रहण करें (जानें, , समझें), तभी वह मङ्गल रूप होता है, जैसे साधु / अर्थात् साधु यद्यपि मङ्गल रूप होता है, - 8288906@ @ @ @ @ @ @ @ @