________________ aaaaaact 20000000 3333333333333330203020030332 नियुक्तिनाथा-1 (अमिका) विशेषार्थ आचार्य अभयदेव सूरि ने (भगवतीसूत्र-सूत्र-1/1/3-7 की वृत्ति में ) भी पञ्चपरमेष्ठीनमस्कार रूप भाव मजल से (1) विघ्न-नाश, (2) शिष्य की बुद्धि में मालाचरण करने का भाव भरना और शिष्यों को उसके लिए प्रेरणा देना, (3) शिष्ट जनों की आचार-परम्परा का अनुवर्तन -इन , प्रयोजनों की सिद्धि होने का सङ्केत किया है। पाणिनिशास्त्र के महान् भाष्यकार आदरणीय आचार्य , पतञ्जलि ने भी शास्त्र-रचना के पहले, मध्य में तथा अन्त में भी मङ्गलाचरण की महत्ता व सार्थकता : का समर्थन करते हुए कहा है “मङ्गलादीनि, मङ्गलमध्यानि मङ्गलान्तानि च शास्त्राणि प्रथन्ते / वीरपुरुषाणि च भवन्ति, 1 आयुष्मत्पुरुषाणि च, अध्येतारश्च मङ्गलयुक्ता यथा स्युः।” अर्थात् “जिन शास्त्रों के आदि, मध्य व . 4 अन्त में मङ्गलाचरण किया जाता है, वे शास्त्र प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। उसके पढ़ने वाले भी शूरवीर, , दीर्घ आयु वाले एवं मङ्गलमय जीवन वाले होते हैं।" क(हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र "आभिणिबोहियणाणं, सुयणाणंचेव" इत्यादिनाऽऽदिमङ्गलमाह।तथा “वंदण . चिति कितिकम्म" इत्यादिना मध्यमङ्गलम्, वन्दनस्य विनयरूपत्वात्, तस्य , चाभ्यन्तरतपोभेदत्वात्, तपोभेदस्य च मालत्वात्। तथा “पच्चक्खाणं" इत्यादिना : चावसानमङ्गलम्, प्रत्याख्यानस्यावतपो-भेदत्वादेव मालत्वमिति। तत्रैतत्स्यात्, इदं मालत्रयं शास्त्रादिन्नमभिब्बं वा?, यदि भिन्नमतः शास्त्रममङ्गलम्, , तभेदान्यथानुपपत्तेः, अमङ्गलस्य च सतोऽन्यमङ्गलशतेनापि मङ्गलीकर्तुमशक्यत्वात् तन्मजलोपन्यासवैयर्यम्।तदुपादानेऽनिष्ठ वा, यथा प्रागमनलस्य सतःशास्त्रस्य मङ्गलमुक्तम्, एवं मङ्गलान्तरमप्यभिधातव्यम्, आधमलाभिधानेऽपि तदमङ्गलत्वात्, इत्थं पुनरप्यभिघातव्यमित्यतोऽनिशेति। (वृत्ति-हिन्दी-) (नियुक्तिकार द्वारा इन तीनों मङ्गलों में) प्रथम मङ्गल a 'आभिणिबोहियणाणं सुयणाणं चेव' -इत्यादि (प्रथम गाथा के) रूप में किया गया है, और " 'वंदन चिति कितिकम्म' -इत्यादि गाथा के रूप में आगे मध्यमङ्गल किया गया है। चूंकि . - वन्दन विनयरूप होता है, और आभ्यन्तर तप का एक भेद है, इसलिए वह मङ्गलरूप माना , गया है। पच्चक्खाणं' इत्यादि गाथा के रूप में आगे अन्तमाल किया गया है, क्योंकि प्रत्याख्यान बाह्यतप का एक भेद है, अतः उसकी मङ्गलरूपता (स्पष्ट) है। (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 11 - 2233333333