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________________ 0000002 -acaaaaaa नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) (हरिभद्रीय वृत्तिः) कश्चिदाह- अधिगतशास्त्रार्थानां स्वयमेव प्रयोजनादिपरिज्ञानात् शास्त्रादौ प्रयोजनाडुपन्यासवैयर्यमिति तब्न, अनधिगतशास्त्रार्थानां प्रवृत्तिहेतुत्वात् तदुपन्यासोपपत्तेः।। प्रेक्षावतां हि प्रवृत्तिनिश्चयपूर्विका, प्रयोजनादौ उत्तेऽपि च अनधिगतशास्त्रार्थस्य तन्निश्चयानुपपत्तेः। 4 संशयतः प्रवृत्त्यभावात्तदुपन्यासोऽनर्थकः इति चेत्, न, संशयविशेषस्य प्रवृत्तिहेतुत्वदर्शनात्, " कृषीवलादिवत्, इत्यलं प्रसङ्गेन। (वृत्ति-हिन्दी-) यहां किसी ने (धर्मोत्तर आचार्य के अनुयायी-व्यपोहवादी बौद्ध) ने से शंका प्रस्तुत की- जिन्होंने शास्त्र का अध्ययन किया है, उन्हें तो स्वतः (प्रस्तुत) शास्त्र के . प्रयोजन आदि का ज्ञान है ही, तब शास्त्र के प्रारम्भ में (उनके लिए) प्रयोजन आदि का कथन व्यर्थ है? (उत्तर) ऐसी बात नहीं। जिन्होंने शास्त्र का अध्ययन नहीं किया है, उन्हें - इसमें प्रवृत्त कराने के लिए उस (प्रयोजन) का कथन करना संगत हो जाता है। (पुनः शंका) समझदार व्यक्तियों की प्रवृत्ति निश्चय पूर्वक होती है, तब प्रयोजन आदि का कथन करने पर भी, जब तक शास्त्र-निहित अर्थ का अध्ययन नहीं कर लें, तब तक उन्हें प्रयोजन आदि का 21 निश्चय नहीं होगा। (अनिर्णय की स्थिति में) संशय के कारण उनकी शास्त्र (के अध्ययन) में " प्रवृत्ति नहीं होगी, इसलिए प्रयोजन का कथन व्यर्थ है? (उत्तर-) ऐसा नहीं। (अनिष्ट-अभाव - एवं इष्ट सिद्धि से जुड़ा) संशय-विशेष प्रवृत्ति का हेतु होता देखा गया है, किसान की तरह [अर्थात् जैसे किसान को खेती के प्रयोजन का ज्ञान होता है, किन्तु अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होगी कि नहीं है -ऐसा संशय-विशेष उसे खेती के कार्य में प्रवृत्त कराता ही है, उसी तरह शास्त्र के प्रयोजन को जान " a लेने पर भी, पाठक शास्त्र के अध्ययन में इसलिए प्रवृत्त होंगे कि चलो, देखा जाय ज्ञात प्रयोजन इस a शास्त्र के अध्ययन से पूरा होता है कि नहीं। यहां इतना ही कहना पर्याप्त होगा, अधिक विस्तार की जरूरत नहीं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतं मङ्गलमुच्यते-यस्मात् श्रेयासि बहुविघ्नानि भवन्ति इति।उक्तं चश्रेयासि बहुविघ्नानि, भवन्ति महतामपि। अश्रेयसि प्रवृत्तानाम्, क्वापि यान्ति विनायकाः॥ इति। आवश्यकानुयोगश्च अपवर्गप्राप्तिबीजभूतत्वात् श्रेयोभूत एव, तस्मात्तदारम्भे, विघ्नविनायकायुपशान्तये तत् प्रदर्श्यत इति।तच्च मङ्गलं शास्त्रादौ, मध्ये, अवसाने चेष्यत इति। 09092ece@nce@pecre2092cRO900
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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