________________ 333333333333333333232323232223222222222222232 -kacacacacace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 20000mm (वृत्ति-हिन्दी-) आवश्यक सूत्र' (ग्रन्थ) का अभिधेय (विषय वस्तु) है- (विशिष्ट ca ज्ञान-क्रिया की साधिका) सामायिक आदि (का निरूपण)। 'तर्कानुसारी' (श्रोताओं) को दृष्टि , में रखें तो 'सम्बन्ध' है- उपाय व उपेय (फल) भाव रूप। (प्रश्न-) कैसे? (उत्तर-). सामायिक आदि 'अपर-प्रयोजन' या मुक्ति रूपी 'परम प्रयोजन' उपेय (लक्ष्य प्राप्य) है और 1 वचनात्मक 'आवश्यक' शास्त्र ही (उस उपेय को प्राप्त करने का साधन) उपाय है। क्योंकि - उस (आवश्यक शास्त्र) से सामायिक (व चतुर्विंशति-स्तव) आदि अर्थ (विषय-वस्तु) का , निश्चय (निर्णयात्मक-ज्ञान) होता है, और उसके बाद (ही) सम्यक्दर्शन आदि में निर्मलता , एवं (समीचीन) क्रिया का प्रयत्न होता है जिससे 'मुक्ति' प्राप्त होती है। अथवा (श्रद्धानुसारी, श्रोताओं को लक्ष्य कर) स्वयं ही (नियुक्तिकार) उपोद्घात-नियुक्ति ग्रन्थ 'उद्देसे निद्देसे य' 1 a इत्यादि (140वीं गाथा) के द्वारा आगे विस्तार-पूर्वक (सम्बन्ध का) कथन करेंगे। ca विशेषार्थ तात्पर्य यह है कि श्रोता दो प्रकार के होते हैं- (1) तर्कानुसारी, अर्थात् तर्क, युक्ति व हेतु 44 आदि के माध्यम से उपदेश को ग्रहण करने वाले, और (2) श्रद्धानुसारी।तर्कानुसारी श्रोता सामायिक ca आदि का ज्ञान प्राप्त करना तथा मुक्ति रूप प्रयोजन की सिद्धि चाहता है। उसके लिए मुक्ति आदि 4 उपेय है तो यह शास्त्र उसका उपाय है। शास्त्र का उक्त प्रयोजन के साथ उपाय-उपेय सम्बन्ध भी उक्त , कथन से स्पष्ट हो जाता है। यहां 'तर्क' से तात्पर्य शुष्क तर्क से नहीं है। यहां तर्कानुसारी का अर्थ हैce श्रद्धा की गौणता और तर्क की प्रधानता का भाव रखने वाले अर्थात् श्रद्धासमन्वित परीक्षक व्यक्ति। ca शास्त्रीय वाद या चर्चा में भी कुछ मौलिक पदार्थों के सद्भाव की श्रद्धा अपेक्षित होती है।युक्ति व तर्क . के सहारे 'सत्य' की पुष्टि होती है-यह राजा प्रदेशी के दृष्टान्त से समझा जा सकता है (द्र. राजप्रश्नीय / सूत्र)। केशीकुमार श्रमण की युक्तियों और तर्क ने राजा प्रदेशी जैसे नास्तिक को आस्तिक बना दिया . ca था। इसी दृष्टि से नन्दी सूत्र (सू. 115) में जिज्ञासु जनों के 8 बौद्धिक गुणों का उल्लेख है, जिनमें 2 सुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण तो हैं ही, ईहा व अपोह का भी निर्देश है। ईहा व अपोह -ये चिन्तन-मननसमीक्षण आदि युक्ति मार्ग के ही अंग हैं। वस्तुतः वस्तु-स्वभाव तर्कातीत होता है। इसलिए आचार्य समन्तभद्र ने कहा है-स्वभावोऽतर्कगोचरः (आप्तमीमांसा, 100)।शुष्क तर्क-कोरा वाद-विवाद या , कुतर्क से तो वस्तु का यथार्थ स्वरूप ज्ञात नहीं हो सकता।शुष्क तर्कवाद की निन्दा करते हुए आचार्य व हरिभद्र ने अपने अन्य ग्रन्थ (योगदृष्टिसमुच्चय, 144-145) में कहा है कि यदि मात्र हेतुवाद से " & अतीन्द्रिय पदार्थों का निर्णय हो सकता होता तो अभी तक निर्णय हो गया होता। किन्तु शुष्क तर्क से , अतीन्द्रिय पदार्थों का निर्णय नहीं हो पाता, क्योंकि वहां मिथ्या अभिमान निहित होता है, अतः शुष्क " तर्कवाद हेय ही है। श्रद्धानसारी श्रोता के प्रयोजनादि का निरूपण आगे करेंगे। (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)