________________ -aaraaaa គ គ គ គ គ គ 333333333333 नियुक्ति माथा-1 (भूमिका) विशेषार्थ तात्पर्य यह है कि मुक्ति रूप परम प्रयोजन की पूर्ति की दृष्टि से, तीर्थकर के लिए कुछ विशेष / करना नहीं रह जाता है, क्योंकि 'केवल' झान प्राप्त होने व 'केवली' होने से 'मुक्ति' उसके लिए . अवश्यम्भाविनी हो जाती है। अतः वह 'कृतकृत्य' है। फिर भी तीर्थकर नाम कर्म का वेदन कर ही है उसका क्षय हो सकता है। वह वेदन धर्मदेशना आदि से होता है। इस दृष्टि से उनकी धर्म-देशना का औचित्य स्पष्ट हो जाता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) प्रोणांत्वपरं तदर्थाधिगमः, परं मुक्तिरेवेति।कथम्? नानक्रियाभ्यां मोक्षस्तन्मयं चावश्यकमितिकृत्वा बावश्यकश्रवणमन्तरेण विशिष्ट-ज्ञानक्रियावाप्तिरुपजायते, कुतः?, , a तत्कारणत्वात्तदवाओः, तदवातौ च पारम्पर्येण मुक्तिसिद्धेः, इत्यतः प्रयोजनवान् . आवश्यकप्रारम्भप्रयास इति। (वृत्ति-हिन्दी-) श्रोताओं का अपर प्रयोजन तो उस (सूत्रात्मक व अर्थात्मक आगम) , का बोध प्राप्त करना है, और परम प्रयोजन मुक्ति ही है। (प्रश्न-) यह कथन किस प्रकार , . संगत है? (अर्थात् इस शास्त्र के अध्ययन से ये दोनों प्रयोजन किस प्रकार सिद्ध होते हैं?) a (उत्तर-) ज्ञान और क्रिया (इन दोनों) से मोक्ष प्राप्त होता है, और ज्ञान व क्रिया का समन्वित रूप (सामायिक आदि रूप) ही यह आवश्यक है, क्योंकि आवश्यक-श्रवण के बिना परम : प्रयोजन रूप 'मुक्ति' के अनुकूल (अर्थात् मुक्ति दिलाने योग्य) विशिष्ट ज्ञान-क्रिया की ? a सम्पन्नता सम्भव नहीं हो पाती। (प्रश्न-) ऐसा क्यों? (उत्तर-) इसलिए कि विशिष्ट ज्ञान क्रिया की प्राप्ति में आवश्यक-श्रवण कारण है, और विशिष्ट ज्ञान-क्रिया की प्राप्ति होने पर : परम्परा से मुक्ति की सिद्धि हो जाती है। इस तरह, (ग्रन्थकर्ता व श्रोता- दोनों के द्विविध प्रयोजनों को स्पष्ट कर दिये जाने पर), 'आवश्यक' सूत्र-विवृति के प्रारम्भ का प्रयास करना a (निष्प्रयोजन नहीं, अपितु) 'सप्रयोजन' है (-यह सिद्ध हो जाता है)। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तदभिधेयं तु सामायिकादि।संबन्धश्चयोपेयभावलक्षणः तर्कानुसारिणः प्रति, कथम्? . उपेयं सामायिकादिपरिबानम, मुक्तिपदं वा, उपायस्तु आवश्यकमेव वचनरूपापन्नमिति, . यस्माततः सामायिकाधनिथयो भवति, सति च तस्मिन् सम्यग्दर्शनादिवैमल्यं क्रियाप्रयत्नश्च, 1 * तस्मात मुक्तिपदप्रातिरिति।अथवा उपोद्घातनिर्युक्तौ "उद्देसे निदेसे य” इत्यादिना ग्रन्थेन / सप्रपछेन स्वयमेव वक्ष्यति। . (r)p@@@@9808080808080@@