________________ cacaacacacee 0000000 2333333333333332323222223222 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) | विशेषार्थ ___ 'आवश्यक सूत्र' पर आचार्यों द्वारा विस्तृत व्याख्या की गई है, ऐसी स्थिति में प्रस्तुत " a व्याख्या की सार्थकता नहीं है- इस आशंका का समाधान वृत्तिकार ने उक्त कथन द्वारा किया है। " * वृत्तिकार का अभिप्राय यह है कि सूत्र/सिद्धान्त को कुछ शिष्य विस्तार से समझना चाहते हैं, तो कुछ संक्षेप से। यद्यपि आवश्यक सूत्र पर विस्तृत व्याख्यान उपलब्ध है, तथापि वह संक्षेप-रुचि' शिष्यों के , लिए उपकारक नहीं है, अतः उनके उपकार- हेतु (किया जा रहा) यह प्रयास निरर्थक नहीं, अपितु , सार्थक है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) इहावश्यकप्रारम्भप्रयासोऽयुक्तः, प्रयोजनादिरहितत्वात्, कण्टक-शाखामर्दनवत् - इत्येवमाद्याशङ्कापनोदाय प्रयोजनादि पूर्व प्रदर्श्यत इति, उक्तं च प्रेक्षावतां प्रवृत्त्यर्थ, फलादित्रितयं स्फुटम्। मङ्गलं चैव शास्त्रादौ, वाच्यमिष्टार्थसिद्धये / इत्यादि। (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) इस (शब्दमय व अर्थमय आवश्यक सूत्र की विवृति/ a व्याख्या) को प्रारम्भ करने का प्रयास संगत/औचित्यपूर्ण नहीं (प्रतीत होता) है, क्योंकि इस a (के प्रारम्भ) में प्रयोजन (अभिधेय, सम्बन्ध, मङ्गलाचरण) आदि का कथन नहीं किया गया , है। (प्रयोजन आदि के कथन के बिना ही शास्त्र-रचना करने का प्रयास तो वैसे ही / a (अनुचित/असंगत) है, जैसे कोई कांटों भरी शाखा का मर्दन करे (या कौए के कितने दांत : हैं- इसकी परीक्षा करे)। (समाधान-) उक्त आशंका के निराकरण करने की दृष्टि से, (मैं : पूर्वाचार्यों द्वारा मान्य), प्रयोजन (एवं अभिधेय/विषय-वस्तु, उनका सम्बन्ध व मङ्गलाचरण) , आदि को सर्वप्रथम बता रहा हूं। (इस विषय के समर्थन में शास्त्रकारों ने) कहा भी हैa (निर्विघ्न समाप्ति रूप) अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिए (किसी भी) शास्त्र की रचना, के प्रारम्भ में फल (एवं अभिधेय/विषय वस्तु, और उनका परस्पर सम्बन्ध) आदि तीन के साथ-साथ मङ्गलाचरण (-इन चार बातों) का स्पष्ट रूप से कथन करना चाहिए, ताकि : समझदार (प्रेक्षावान्) लोग (उस शास्त्र के अध्ययन में) प्रवृत्त हों। इत्यादि। (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)900