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________________ -egecaceecacece नियुक्ति-गाथा-69-70 22222222 222232322333333333333333333333333333333333333 यहां भी व्याख्याकार ने नन्दीश्वर आदि द्वीपों में स्थित चैत्यों की वन्दना करने का निर्देश किया है। ce एक मत यह भी यहां बताया गया है कि जंघाचारण व विद्याचारण- दोनों की गमन-शक्ति इतनी , होती है-यह कहना उनकी शक्ति का संकेतमात्र है, यह जरूरी नहीं कि वे इतना गमनागमन करते ही हों। इसके अलावा और भी अनेक प्रकार के चारणमुनि होते हैं। कई पल्हथी मार कर, बैठे हुए, और कायोत्सर्ग किये हुए पैरों को ऊंचे-नीचे किये बिना आकाश में गमन कर सकते हैं। कई : चारणलब्धि वाले मुनि बावड़ी, नदी, समुद्र आदि जलाशयों में जलकायिक आदि जीवों की विराधना किये बिना पानी पर जमीन की तरह पैर रखने में कुशल होते हैं, वे जलचारणलब्धिमान् मुनि & कहलाते हैं। जो जमीन से चार अंगुलि-प्रमाण ऊपर अधर आकाश में चलने में और पैरों को ऊंचे- . व नीचे करने में कुशल होते हैं, वे भी जंघाचारणलब्धिधारी मुनि कहलाते हैं। कई भिन्न-भिन्न वृक्षों के . : फलों को ले कर फल के आश्रित रहे हुए जीवों को पीड़ा न देते हुए फल के तल पर पैर ऊंचे-नीचे , रखने में कुशल होते हैं, वे फलचारणलब्धिधारी मुनि कहलाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के वृक्षों, . लताओं, पौधों या फूलों को पकड़ कर उनके आश्रित सूक्ष्म जीवों की विराधना किये बिना सिर्फ फूल, की पंखुड़ियों का आलंबन ले कर गति कर सकते हैं, वे पुष्पचारणलब्धिघर मुनि कहलाते हैं। विविध प्रकार के पौधों, बेलों, विविध अंकुरों, नई कोंपलों, पल्लवों या पत्तों आदि का अवलंबन ले कर , र सूक्ष्मजीवों को पीड़ा दिये बिना अपने चरणों को ऊंचे-नीचे रखने और चलने में कुशल होते हैं, वे " & पत्रचारणलब्धिधारी मुनि कहलाते हैं। चार सौ योजन ऊंचाई वाले निषध अथवा नील पर्वत की " शिखर-श्रेणी का अवलम्बन ले कर जो ऊपर या नीचे चढ़ने-उतरने में निपुण होते हैं, वे . श्रेणीचारणलब्धिमान मुनि कहलाते हैं।जो अग्निज्वाला की शिखा ग्रहण करके अग्निकायिक जीवों , की विराधना किये बिना और स्वयं जले बिना विहार करने की शक्ति रखते हैं, वे अग्निशिखाचारणलब्धियुक्त मुनि कहलाते हैं। धुएं की ऊंची या तिरछी श्रेणी का अवलम्बन ले कर , + अस्खलितरूप से गमन कर सकने वाले घूमचारणलब्धिप्राप्त मुनि कहलाते हैं।बर्फ का सहारा ले कर , 4 अप्काय की विराधना किये बिना अस्खलित गति कर सकने वाले नीहारचारणलब्धि मुनि कहलाते हैं। कोहरे के आश्रित जीवों की विराधना किये बिना उसका आश्रय ले कर गति कर सकने की लब्धि . वाले अवश्यायचारण मुनि कहलाते हैं। आकाश मार्ग में विस्तृत मेघ-समूह में जीवों को पीड़ा न देते , हुए चलने की शक्ति वाले मेघचारण मुनि कहलाते हैं। वर्षाकाल में वर्षा आदि की जलधारा का अवलम्बन ले कर जीवों को पीड़ा दिये बिना चलने की शक्ति वाले वारिधाराचारण मुनि कहलाते हैं।
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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