________________ Racecacecece 29999999999900 2222222238232.32232223333322222222222222222333 नियुक्ति-गाथा-60-61 | लक्षण वाले स्पर्द्धक प्रायः तीव्र होते हैं, अननुगामुक व प्रतिपाती प्रायः मन्द होते हैं, मिश्र | स्पर्द्धक मध्यम होते हैं। (अतः अवधिज्ञान की तीव्रता व मंदता बताने से पूर्व, उनका स्पर्द्धक >> व स्वरूप और उनके आनुगामक आदि प्रकार बताए गए हैं, जो प्रासंगिक ही हैं)॥60॥ a (हरिभद्रीय वृत्तिः) (द्वितीयगाथाव्याख्या-) फड्डकानि- पूर्वोक्तानि, तानि च अनुगमनशीलानि " + आनुगामुकानि, एतद्विपरीतानि अनानुगामुकानि, उभयस्वरूपाणि मिश्रकाणि च / एवकारः " & अवधारणे, तान्येकैकशः प्रतिपतनशीलानि प्रतिपातीनि, एवमप्रतिपातीनि मिश्रकाणि च भवन्ति। तानि च मनुष्यतिर्यक्षुयोऽवधिस्तस्मिन्नेव भवन्तीति। आह- आनुगामुकाप्रतिपातिफड्डकयोः कः प्रतिविशेषः?, अनानुगामुकप्रतिपातिफडकयोति।अत्रोच्यते, अप्रतिपात्यानुगामुकमेव, आनुगामुकंतु प्रतिपात्यप्रतिपाति च भवतीति शेषः।तथा प्रतिपतत्येव प्रतिपाति, प्रतिपतितमपि च सत् पुनर्देशान्तरे जायत एव, से नेत्थमनानुगामुकमिति गाथार्थः॥११॥ . (वृत्ति-हिन्दी-) द्वितीय (61वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- पूर्वोक्त (स्वरूप, वाले) स्पर्द्धक आनुगामुक यानी अनुगमनशील होते हैं। इनसे विपरीत (स्पर्द्धक) अनानुगामुक, . और उभयस्वरूप वाले मिश्र होते हैं। 'एव' (ही) पद यहां अवधारण कर रहा है, अर्थात् यह 1 a बता रहा है कि इन तीनों में भी प्रत्येक प्रतिपाती यानी पतनशील, और अप्रतिपाती एवं मिश्र , 4 (-इन तीन-तीन प्रकारों वाला) है। मनुष्य व तिर्यञ्चों में जो अवधिज्ञान होता है, उसी में ये " तीनों प्रकार होते हैं। a (शंका-) आनुगामुक व अप्रतिपाती स्पर्द्धकों में क्या अन्तर है? इसी तरह - अनानुगामुक व प्रतिपाती स्पर्द्धकों में क्या अन्तर है? समाधान यह है- अप्रतिपाती स्पर्द्धक , a आनुगामुक ही होता है, किन्तु आनुगामुक प्रतिपाती व अप्रतिपाती दोनों होता है। प्रतिपाती , यानी जो प्रतिपतित होता ही हो, और प्रतिपतित होकर भी पुनः अन्य देश में उत्पन्न होता हो, . किन्तु ऐसा 'अनानुगामुक' नहीं होता। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 161 // विशेषार्थ अवधिज्ञान के निम्नलिखित विविध भेदों के स्वरूपों को यहां ध्यान में रखना अपेक्षित है -3388888888888888888888888888888887777777777 Recen@c869888888@@ce@@ 255