________________ - -222222222222333333333333333333333333333333333 ca caca cace caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 090920022 / मनुष्य व तिर्यञ्चों में स्पर्धकों के प्रकार इस रूप में है- अनुगामी, अननुगामी, | & मिश्र, और (इन्हीं के तीन-तीन भेद) प्रतिपाती, अप्रतिपाती व मिश्र // 61 // c. (हरिभद्रीय वृत्तिः) (प्रथमगाथाव्याख्या-) इह फड्डकानि अवधिज्ञाननिर्गमद्वाराणि अथवा है गवाक्षजालादिव्यवहितप्रदीपप्रभाफड्डकानीव फड्डकानि, तानि चासंख्येयानि संख्येयानि व चैकजीवस्य / तत्रैकफड्डकोपयोगे सति नियमात् 'सर्वत्र' सर्वैः फड्डकैरुपयुक्ता भवन्ति, . & एकोपयोगत्वाज्जीवस्य, लोचनद्वयोपयोगवद्, प्रकाशमयत्वाद्वा प्रदीपोपयोगवदिति। आह-तीव्रमन्दद्वारं प्रक्रान्तं विहाय फड्डकावधिस्वरूपं प्रतिपादयतः प्रक्रमविरोध - a इति।अत्रोच्यते, प्रायोऽनुगामुकाप्रतिपातिलक्षणौ फड्डको तीव्रौ, तयेतरौ मन्दौ, उभयस्वभावता च मिश्रस्येति गाथार्थः // 60 // (वृत्ति-हिन्दी-) प्रथम (60वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- फड्ड या फडक (का 0 संस्कृत रूप स्पर्धक है, उस) का अभिधेय अर्थ है- अवधिज्ञान के (शरीर स्थित) निर्गम , द्वार, अथवा जाली से ढके दीपक से बाहर निकलती हुई ज्योति-रश्मियों की तरह होने के . कारण इन्हें 'स्पर्धक' कहा जाता है। प्रत्येक (अवधिज्ञानी) जीव के ये असंख्य या संख्येय , ca हुआ करते हैं। इनमें एक स्पर्धक का उपयोग हो रहा हो तो नियत रूप से सर्वत्र अर्थात् सभी , ca स्पर्धकों के उपयोग का सद्भाव रहता ही है, (इसके पीछे) कारण यह है कि जैसे एक आंख < से देखने वाला व्यक्ति दोनों आंखों के उपयोग से (स्वतः) उपयुक्त (दर्शन की क्रिया से युक्त) >> होता है, उसी प्रकार उपयोग 'एक' ही होता है (अर्थात् एक समय में एक ही उपयोग होता . है, ऐसा नहीं होता कि एक स्पर्धक का उपयोग (एक विषय पर) हो तो दूसरे स्पर्धकों का , उपयोग अन्यत्र हो, अतः यही मानना उपयुक्त है कि सभी स्पर्धकों का उपयोग अर्थात् , सबका युगपत् और एक ही होता है)। अथवा जैसे प्रदीप का एक ही सामान्यतः उपयोग 1 a 'प्रकाशरूप' होना होता है, वैसे ही (सभी स्पर्धकों का मिलकर एक ही उपयोग) यहां ce होता है। (शंका-) तीव्र व मन्द द्वार के अन्तर्गत निरूपण करने के प्रकरण को छोड़ कर " स्पर्धक-अवधि के स्वरूप को जो आप बता रहे हैं, वह तो प्रकरण-विरोध है? समाधान यह " / है- स्पर्धक के जो तीन भेद आनुगामुक आदि बताए गए हैं, उनमें आनुगामुक व अप्रतिपाती - 254 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)