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________________ - ca ca ca ca ca ca ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) DOOD MORE (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) तप्र यानी नौका, उसके जैसे आकार वाला- 'तप्राकार' | ca (यह नारकियों का अवधिज्ञान होता है)। पल्लक से तात्पर्य है- लाट देश में धान रखने का . स्थान, 'आकार' पद की अनुवृत्ति की जाती है, इसका सम्बन्ध पल्लक, पटह आदि में , & प्रत्येक के साथ कर लेना चाहिए। अतः पल्लक से 'तात्पर्य है- पल्लक (धान के कोठे) के . 4 आकार जैसे आकार वाला (यह अवधिज्ञान भवनपति देवों का होता है)। पटहक यानी पटह, . र यह एक विशेष 'आतोद्य' वाद्य (मृदंग, ढोल, आदि की तरह आघात से बजाया जाने वाला) , होता है। (और व्यन्तर देवों का अवधिज्ञान इसी तरह का होता है)। झल्लरी -यह चमड़े से " & अवनद्ध एक लम्बा वलयाकार आतोद्य वाद्य ही होता है (और ज्योतिष्क देवों का अवधिज्ञान " & इसी तरह का होता है)। इसी तरह मृदंग भी, जिसका ऊर्ध्वभाग आयताकार तथा नीचे का , M भाग फैला हुआ एवं ऊपर (एक छोर पर) पतला, (संकीर्ण) होता है (एक तरफ मुख संकीर्ण ल होता है और दूसरा मुख विस्तृत होता है), यह भी एक विशेष आतोद्य वाद्य है (और सौधर्म , म आदि कल्पवासी देवों का अवधिज्ञान इसी तरह का होता है)। 'पुष्प' -चूंकि सूत्र में सूचना : ca (निर्देश, संकेत रूप) मात्र होती है, अतः पुष्प से यहां गृहीत है- पुष्पों की शिखाओं की " ca कतार के रूप में बनी हुई चङ्गेरी या पुष्पचङ्गेरी (गवेयक देवों का अवधिज्ञान इस जैसा होता . & है)। यव यानी यव-नालक, इसे 'कन्याचोलक' भी कहा जाता है (अनुत्तर विमानवासी देवों " & का अवधिज्ञान इसी तरह का होता है)। (हरिभद्रीय वृत्तिः) अयं भावार्थः- तप्राकारादिरवधिर्यवनालकाकारपर्यन्तो यथासंख्यं नारक-भवनपतिcव्यन्तरज्योतिष्क-कल्पोपपन्न-कल्पातीत-अवेयकानुत्तरसुराणां सर्वकालनियतोऽवसेयः। 7 तिर्यग्नराणां भेदेन नानाविधाभिधानाद्। (वृत्ति-हिन्दी-) भावार्थ यह है- तप्र आदि से लेकर यवनालक तक के आकार वाले अवधिज्ञान क्रमशः नारक, भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, कल्पोपपन्न देव, कल्पातीत ग्रैवेयक एवं अनुत्तरविमानवासी देवों के होते हैं और सभी कालों में (इसी आकार में) नियत होते हैं, ca क्योंकि तिर्यश्च व मनुष्यों के अवधिज्ञान को भेद की दृष्टि से नाना प्रकार का बताया जा CM रहा है। 333338 77444474444738888888888888888888888 - - 240 89@c@@ @9@ @ @ @ @ ce(r)908
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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