________________ -RRRRRRRce 999999999999 && &&& 33333333333322232233333333333333333333 नियुक्ति गाथा-55 विशेषार्थ पहले (गाथा-30 में) अवधिज्ञान के जघन्य क्षेत्र को तीन समय के आहारक सूक्ष्म पनक >> जीव जितना बताया गया है। अब इस गाथा में अवधिज्ञान का संस्थान जलबिन्दु की तरह बताया है गया है। पहला निरूपण क्षेत्र-परिमाण की दृष्टि से है और यह निरूपण संस्थान की दृष्टि से है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) एवं तावज्जघन्येतरावधिसंस्थानमभिहितम् / साम्प्रतं विमध्यमावधिसंस्थानाभिधित्सयाSSह (नियुक्तिः) तप्पागारे 1 पल्लग 2 पडहग 3 झल्लरि 4 मुइंग 5 पुप्फ 6 जवे 7 / तिरियमणुएसु ओही, नाणाविहसंठिओ भणिओ // 55 // [संस्कृतच्छायाः-तप्र-आकारः, पल्लक-पटहक-झल्लरी-मृदा-पुष्प-यवः।तिर्यग्-मनुजेषु अवधिः नानाविध-संस्थितों भणितः॥] _ (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, यहां तक जघन्य व उत्कृष्ट अवधिज्ञान के संस्थानों का कथन हुआ। अब मध्यम अवधिज्ञान के आकार के निरूपण हेतु (आगे की गाथा) कह रहे हैं (55) (नियुक्ति-अर्थ-) अवधिज्ञान के ये आकार होते हैं- तप्र, पल्लक, पटह, झल्लरी, 1 ca मृदंग, पुष्पचंगेरी और यव / (किन्तु) तिर्यञ्चों व मनुष्यों में अवधिज्ञान को नाना प्रकार के ca संस्थानों वाला बताया गया है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) 'तप्रः' उडुपकः, तस्येवाकारो यस्यासौ तप्राकारः।तथा पल्लको नाम " लाटदेशे धान्यालयः, आकारग्रहणमनुवर्तते, तस्येवाकारो यस्यासौ पल्लकाकारः, ce एवमाकारशब्दः प्रत्येकमभिसंबन्धनीयः इति। पटह एव पटहकः -आतोद्यविशेषः। तथा . चर्मावनद्धा विस्तीर्णवलयाकारा झल्लरी आतोद्यविशेषः एव।तथा ऊर्ध्वायतोऽधो विस्तीर्ण , उपरि च तनुः, मृदङ्गः आतोद्यविशेष एव। 'पुप्फेति' -'सूचनात्सूत्रम्' इतिकृत्वा / * पुष्पशिखावलिरचिता चङ्गेरी पुष्पचङ्गेरी परिगृह्यते। 'यव' इति यवनालकः, स च " कन्याचोलकोऽभिधीयते। - 87@ca@ner@@ @ @ @0890&cRODe 239 &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& - 333