________________ -RRRRRRRece नियुक्ति-गाथा-51 2099 9 9 9 90 9 - (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, वैमानिक देवों के अवधिज्ञान के अधोवर्ती क्षेत्र प्रमाण ce का प्रतिपादन हुआ। अब उसी अवधि के तिर्यक् (तिरछे) व ऊंचे (ऊपर की ओर) क्षेत्र की मर्यादा को स्पष्ट कर रहे हैं 23333333333333 33333333333333333333333332223 (51) (नियुक्ति-अर्थ-) इन (वैमानिक देवों) के (अवधिज्ञान द्वारा) ज्ञेय विषय हैं-तिर्यक् / & लोक में असंख्येय द्वीप व समुद्र, और ऊर्ध्वलोक में अपने अपने कल्प के स्तूप (व ध्वजा) , आदि। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) एतेषाम्' शक्रादीनाम्, संख्यायन्त इति संख्येयाः न संख्येया असंख्येयाः। तिर्यग्, द्वीपाश्च-जम्बूद्वीपादयः, सागराश्च लवणसागरादयः क्षेत्रतोऽवधिपरिच्छेद्यतया अवसेयाः 4 इति वाक्यशेषः।तथा उक्तलक्षणात्-असंख्येयद्वीपोदधिमानात् क्षेत्रात् बहुतरम्, उपरिमा एव 4 उपरिमका उपर्युपरिवासिनो देवाः, खल्ववधिना क्षेत्रं पश्यन्तीति वाक्यशेषः। तथा ऊर्ध्वं स्वकल्पव स्तूपाद्येव यावत् क्षेत्रं पश्यन्ति, आदिशब्दाद् ध्वजादिपरिग्रहः इति गाथार्थः // 11 // . (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) इनका अर्थात् (पूर्वोक्त) शक्र आदि के (अवधिज्ञेय हैं-)। ca असंख्येय यानी जिनकी गिनती न की जा सके, तिर्यक् यानी तिरछी दिशा-तिर्यग्लोक में, द्वीप यानी जम्बूद्वीप आदि, सागर यानी लवणसागर आदि, क्षेत्र की दृष्टि से, ‘अवधिज्ञान " द्वारा ज्ञेय (जान सकने योग्य) हैं' -यह वाक्य का अवशिष्ट (अंतिम) भाग है। तथा पूर्वोक्तfa असंख्येय द्वीप व सागर परिमित क्षेत्र से अधिकतर क्षेत्र को, उपरिवर्ती ही, अर्थात् (क्रमशः) , जो ऊपर-ऊपर रहते हैं, वे (वैमानिक) देव ही निश्चित रूप से, अवधिज्ञान से देख पाते हैं6 इस प्रकार वाक्य पूर्ण करना चाहिए। और, ऊपर की ओर (वे वैमानिक देव) अपने अपने र कल्पों के (विमान के) स्तूप आदि तक के क्षेत्र को देखते हैं, आदि पद से ध्वजा आदि अर्थ है ce लेना चहिए। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ ||51 || विशेषार्थ_ 'अमुकदेव' अमुक पृथ्वी को देखते हैं- इस कथन का तात्पर्य यह है कि वह देव अपने & शरीर से प्रारम्भ कर उस पृथ्वी के अधस्तवर्ती चरमान्त (भाग) तक जानता-देखता है, उसका ज्ञान " निरन्तर पूर्ण होता है, उसमें पर्वत, दीवार आदि का व्यवधान नहीं होता। - 80@RDSCR@@@@@98088898 233 कर