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________________ कपा RCE CROR OR CROR श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 90090mm देवों के अविधज्ञान दिशाओं के अनुरूप अधिक कम भी माना गया है। उदाहरणार्थc& भवनवासी व व्यन्तर देवों का अवधिज्ञान ऊर्ध्वलोक में अधिक होता है, शेष देवों का अधोलोक गत। ज्योतिष्क (व नारकों) का तिर्यग्लोगत अधिक होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) इत्थं वैमानिकानाम् अवधिक्षेत्रमानमभिधाय, इदानीं सामान्यतो देवानां से प्रतिपादयन्नाह (नियुक्तिः) संखेज्जजोयणा खलु, देवाणं अद्धसागरे ऊणे। तेण परमसंखेज्जा, जहण्णयं पंचवीसं तु // 12 // [संस्कृतच्छायाः- संख्येययोजनानि खलु देवानामर्धसागरे ऊने / तेन परमसंख्येयानि जघन्यकं " & पञ्चविंशतिस्तु॥ (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, वैमानिक देवों के अवधिज्ञान की क्षेत्र मर्यादा का कथन " & कर, अब सामान्यतया देवों के अवधिज्ञान की क्षेत्र-मर्यादा का प्रतिपादन करने जा रहे हैं 38888888888888 822333333323333333333333333333333333333333333 (52) (नियुक्ति-अर्थ-) जिन देवों की आयु अर्द्धसागरोपम से कम होती है, उनका : (अवधिज्ञान-क्षेत्र) संख्येय योजन होता है। उससे अधिक आयु वाले देवों का असंख्येय योजन का (अवधि-क्षेत्र) होता है। (दस हजार वर्ष की) जघन्य आयु वाले देवों का (अवधिक्षेत्र) पच्चीस योजन-परिमित होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) संख्येयानि च तानि योजनानि चेति विग्रहः। खलुशब्दस्त्वेवकारार्थः, स, चावधारणे, अस्य चोभयथा संबन्धमुपदर्शयिष्यामः। देवानाम्' 'अर्धसागरे' इति अर्धसागरोपमे न्यूने आयुषि सति संख्येययोजनान्येव अवधिक्षेत्रमिति।अर्धसागरोपमन्यून एव आयुषि सति, CM 'ततः परम्' अर्धसागरोपमादावायुषि सति असंख्येयानि योजनानि अवधिक्षेत्रं 4 वैमानिकवर्जदेवानां सामान्यत इति।विशेषतस्तु ऊर्ध्वमधस्तिर्यक्च संस्थानविशेषादवसेयमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) जिन्हें गिना जा सके ऐसे योजनों तक। 'खलु' इसका - 234 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) .
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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