________________ -RRRRRRRece 9000000000 (व्याजा नियुक्ति-गाथा-48-50 (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र प्रथमगाथाव्याख्या-शक्रवेशानश्च शळेशानौ तत्र 'शक्रेशानाविति'। . & शक्रेशानोपलक्षिताः सौधर्मेशानकल्पनिवासिनो देवाः सामानिकादयः परिगृह्यन्ते, ते ह्यवधिना : 6 प्रथमां रत्नप्रभाभिधानां पृथिवीम्, 'पश्यन्ति' इति क्रियां द्वितीयगाथायां वक्ष्यति।तथा द्वितीयां च' पृथिवीमित्यनुवर्त्तते। सनत्कुमारमाहेन्द्राविति' -सनत्कुमारमाहेन्द्रदेवाधिपोपलक्षिताः / ca तत्कल्पनिवासिनस्त्रिदशा एव सामानिकादयो गृह्यन्ते, ते हि द्वितीयां पृथिवीमवधिना पश्यन्ति। & तथा तृतीयांच पृथिवीं ब्रह्मलोकलान्तकदेवेशोपलक्षिताः तत्कल्पनिवासिनो विबुधाः सामानिकादयः / पश्यन्ति, तथा शुक्रसहस्रारसुरनायोपलक्षिताः खल्वन्येऽपि तत्कल्पनिवासिनो देवाश्चतुर्वी पृथिवीं . & पश्यन्तीति गाथार्थः // 48 // _ (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) इनमें प्रथम (48वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार हैशक्रेशान यानी शक्र व ईशान / 'शक' पद से सौधर्मकल्प के तथा 'ईशान' पद से ईशान " & कल्प के निवासी सामानिक आदि देवों का ग्रहण होता है। वे देव रत्नप्रभा नामक प्रथम & पृथ्वी को (देखते हैं)। 'देखते हैं' यह क्रिया आगे दूसरी गाथा में आई है। सनत्कुमार व माहेन्द्र कल्प के निवासी देव दूसरी को देखते हैं, 'पृथ्वी को' इस पद की अनुवृत्ति की जाती है c है। (अतः अर्थ होगा- दूसरी पृथ्वी को देखते हैं)। यहां भी सनत्कुमार व माहेन्द्र देव से उस- . ca उस कल्प के निवासी (सभी) सामानिक आदि देवों का ग्रहण होता है, वे सब अपने . ca अवधिज्ञान से दूसरी पृथ्वी को देखते हैं। इसी प्रकार, ब्रह्मलोक व लान्तक देवेन्द्र पद से . गृहीत उस उस कल्प के निवासी सामानिक आदि देव तीसरी पृथ्वी को तथा शक्र व सहस्रार , 4 इन्द्र पद से गृहीत उस उस कल्प के निवासी अन्य देव चतुर्थ पृथ्वी को देखते हैं- यह गाथा ca का अर्थ हुआ ||48 // a (हरिभद्रीय वृत्तिः) द्वितीयगाथा व्याख्यायते-आनतप्राणतयोः कल्पयोः संबन्धिनो देवाः पश्यन्ति पञ्चमी पृथ्वीम्, तामेव आरणाच्युतयोः सम्बन्धिनो देवा अवधिज्ञानेन पश्यन्ति।स्वरूपकथनमेवेदम्, विमलतरां बहुतरां चेति गाथार्थः॥४९॥ (वृत्ति-हिन्दी-) दूसरी (49वीं) गाथा की व्याख्या की जा रही है-आनत व प्राणत - इन दोनों कल्पों से सम्बन्धित (निवासी) देव पांचवीं पृथ्वी तक, और उसी को आरण व 333333 ब - (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)00 231