________________ -acacacacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 20000mm 2222222222222222222222222222222222 (हरिभद्रीय वृत्तिः) " एवं नारकसंबन्धिनो भवप्रत्ययावधेः स्वरूपमभिधायेदानीं विबुधसंबन्धिनः / प्रतिपिपादयिषुरिदं गाथात्रयं जगाद- . ... . . नियक्ति) सक्कीसाणा पढम, दुच्चं च सणंकुमारमाहिंदा। तच्वं च बंभलंतग, सुक्कसहस्सार य चउत्थीं // 48 // आणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमिं पुढविं। तं चेव आरणच्चुय ओहीनाणेण पासंति // 49 // छट्टि हिटिममज्झिमगेविज्जासत्तमिंच उवरिल्ला। संभिण्णलोगनालिं, पासंति अणुत्तरा देवा // 10 // [संस्कृतच्छायाः-शक्र-ईशानौ प्रथमां द्वितीयां च सनत्कुमार-माहेन्द्रौ।तृतीयां च ब्रह्म-लान्तको शुक्र सहसारौ च चतुर्थीम् ॥आनत-प्राणतकल्पे देवाः पश्यन्ति पञ्चमीं पृथिवीम्।तामेव आरण-अच्युतौ अवधिज्ञानेन पश्यतः॥षष्ठीम् अघस्त्य-मध्यम-अवेयकाः, सप्तमी चोपरितनाः। संभिन्नलोकनाडी पश्यन्त्यनुत्तरा देवाः॥] (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, नारकियों के भवप्रत्यय अवधिज्ञान का स्वरूप बता & कर, अब देवों से सम्बन्धित अवधि ज्ञान का प्रतिपादन करने की दृष्टि से तीन गाथाएं कही है जा रही हैं (48-50) (नियुक्ति-अर्थ-) शक्र (सौधर्मकल्पवासी) तथा ईशान (ऐशान कल्प के) देव अवधिज्ञान , ब से प्रथम पृथ्वी (के नरक) तक, सनत्कुमार व माहेन्द्र (कल्पवासी) देव दूसरी पृथ्वी (के 20 4 नरक) तक, ब्रह्म व लान्तक (कल्पवासी) देव तीसरी पृथ्वी (के नरक) तक, शुक्र व सहस्रार ca (कल्पवासी) देव चौथी पृथ्वी (के नरक) तक, और आनत व प्राणत कल्प (के) देव पांचवीं " व पृथ्वी (के नरक) तक देखते हैं। इसी प्रकार, आरण व अच्युत (देव लोक के) देव भी उसी . G (पांचवी) पृथ्वी (के नरक) तक देखते हैं। अधस्तन व मध्यम अवेयक देव छठी पृथ्वी (के . नरक) तक और उपरितन ग्रैवेयक देव सातवीं पृथ्वी (के नरक) तक देखते हैं। अनुत्तर : (वैमानिक) देव अवधिज्ञान द्वारा संभिन्न (सम्पूर्ण) लोकनाड़ी को देखते हैं। 333 - 230 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) -