________________ aaaaaaana (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-यवेवं 'गाऊ जहन्नमोठी गरएछु' (8) इत्येतद् ब्याहन्यते / अत्रोच्यते, 4 उत्कृष्टजघन्यापेक्षया तदभिधाबाददोषः। इदमत्र हृदयन- उत्कृष्ठावामेब सप्तानामपि रत्वप्रभाववधीनां गव्यूतक्षेत्रपरिचित्तिकृत अवविर्जधन्यः, इत्यलं प्रसनेनेति गाथा G (वृत्ति-हिन्दी-) (संका-) यदि ऐसी बात है (अर्थात् जघन्य अवधि क्षेत्र आधा गव्यूत है) तो (गाथा-46 में) 'नरकों में जघन्य अवधि-क्षेत्र एक गव्यूत होता है' -यह कथन जो किया गया है, वह खण्डित होता है। इसका समाधान यह है- (सभी) उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्रों में , वह जघन्य (एक गव्यूत) है -इस दृष्टि से (गाथा-46) का कथन है, इसलिए कोई दोष नहीं है & है। सारभूत कथन यह है- सातों रत्नप्रभा आदि से सम्बद्ध उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्रों में एक , a गव्यूत क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञान (उत्कृष्ट होते हुए भी अपने ऊपर की पृथ्वी की - a तुलना में) जघन्य है। अतः अधिक कहने की अपेक्षा नहीं। यह गाथा का अर्थपूर्ण हुआ 46 || D विशेषाव नरकावासों में उत्कृष्ट व जघन्य अवधि-क्षेत्र की मर्यादा की परिचायक तालिका इस ca प्रकार है उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र जघन्य अवधि-पत्र 1. रत्नप्रभा पृथ्वी चार गव्यूत साढ़े तीन गव्यूत 2. शर्कराप्रभा पृथ्वी साढे तीन गव्यूत 3. बालुका प्रभा पृथ्वी तीन गव्यूत ठाई गव्यूत 4. पंकप्रभा पृथ्वी ठाईगव्यूत दो गव्यूत 5. धूमप्रभा पृथ्वी दो गव्यूत डेढ़ गव्यूत 6. तमःप्रभा पृथ्वी डेढ़ गव्यूत एक गव्यूत 7. महातमःप्रभा पृथ्वी एक जव्यूत आधा गव्यूत [गव्यूत= एक चौथाई योजन] 3333333 222222222222222222222222 बरकावास तीन गव्यूत (r)(r)ce@pca@na980000000000 229