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________________ aaaaaaaबीआवश्यकनियाक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 222222222222222222222222222222222000232223223 (हरिभद्रीय वृत्तिः) अर्थ तृतीवस्य अर्धतृतीवानि, देव, अधिकगई यस्मिन् तद् अध्ययम्। आह-कुतः पुबरिदम?, सामान्येव प्रतिपृविव्याधारवरका उत्कृष्टमवधिोत्रमुक्तम् a चत्वारिगव्यूतानि इत्यादि, अर्धगज्यूतोनं जपन्यमित्ववसीवते?, उच्यते, सूत्रात्।तथा चोक्तम् "रयणप्पभापुरविनेरझ्याचं ते केववं वित्तं ओहिना जाणति पासंति?,गोवमा! जहणेणं, a अन्जुमाइंगाउयाई उपकोसेणं चत्तारि, एवं गाव मातमपुरविनेरक्या? जोवमा जहणे अगाउयं / उकोसेणं गाउब"रत्नप्रभापृथिवीनारकाणां भदन्त! कियत् क्षेत्रमवधिना जानाति, पश्यति? गौतम! , a जघन्येन अर्धतृतीयानि गव्यूतानि उत्कर्षण वत्वारि.. एवं यावत् महातम पृथिवीनारकाणाम्? गोतम! a जघन्येन अर्द्धगव्यूतम्, उत्कर्षेण गव्यूतम्।। (वृत्ति-हिन्दी-) अर्थतृतीय यानी तृतीय का आधा अर्थात् ढाई गव्यूत (वह चौथी , पंकप्रभा पृथ्वी में अवधिनान का उत्कृष्ट क्षेत्र है), दो गव्यूत (यह पांचवी धूमप्रभा पृथ्वी में 4. उत्कृष्ट क्षेत्र है), और अध्यर्द्ध यानी जिसमें आधा अधिक हो अर्थात् डेढ़ गव्यूत (यह छठी : तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्र है)। (शंका-) सामान्यतया प्रत्येक पृथ्वी पर स्थित नरक में उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्र 'चार गव्यूत' आदि बताये गये हैं, किन्तु उसमें से आधा गव्यूत कम करके जघन्य अवधि क्षेत्र, a समझा जाय, इत्यादि का क्या आधार है? समाधान इस प्रकार है-सूत्र (आगम) के आधार " पर वैसा जाना जाता है। क्योंकि प्रज्ञापना आगम के 33वें पद में) कहा भी गया है भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के मारकी जीव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जानते a देखते हैं?" ____ "गौतम! वे जघन्य साढे तीन गव्यूत, और उत्कृष्ट चार गव्यूत क्षेत्र जानते-देखते " "इसी प्रकार महातमःपृथ्वी के बारकी जीव (कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं)?" : "गौतम! वे जघन्य आधा गव्यूत और उत्कृष्टतः एक गव्यूत क्षेत्र को (जानते-देखते व हैं)।" 228 Specrep.opeOper20290920
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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